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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मात्रामेळ. एक उपर, पछी श्रुति चडता, कवि! ताल धरो दश, चालिश कुल ए रीत करो, जाति ए, राजचन्द्र पद, ते रचवा मचवा, ___ अतिशय अंग उमंग धरो. १६७. ४० मात्रानी १६,५२,८०,१४१ वृत्ति थायछे. १५५ मदनहरा, मदनहर, मदनगृह, मदनहरण, मदनदीपन १०,८,१४,८ यति=४० मात्रा. तेमां आदि बे लघु, अंते गुरु, अने वचमां छत्रीस मात्राना नव चोकलिया आणत्रा तेमां पयोधर-जगण न लाववो. यमक आणवी. ३, ७, ११, १५, १९, २३, २७, ३१, ३५ ३९ मात्राए ताल, लघु बे रोकडिया, नव चोकलिया, तेपर गुरु गरवो आवे, पद शोभावे; कुल मळी कळ चालिश, प्रतिपद भाळीश, मध्य जगण जो नव लावे, झड तो भावे; दश वमु मनु वसुए, विरति करो वळी, त्रण चच्चारे ताल धरो, पद एम करो; वळी मदनहरणने, मदनहरा कही, मदनगृहा ए मदनहरज, रची चित्त ठरो. १६८. छदार्णवमांत्रिभंगी उपर आठ कल लाबवा केहेछ. चिंतामणीमा ६(८ चोकलिया) +ग एम माप का छे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमां कयुं छे के पद्मावतीना प्रत्येक चरणमां (अंत्य सगणवाळी) आठ मात्रा वधे तो मदनगृह अथवा मदनदीपन जाति थायले. छंदःप्रभाकरमां दर्शाच्यु छ के, क्या क्या आ जातिमा ३२, ८ उपर यति कही छे त्रे अशुद्ध जाणवी; पण एम पोतान अभिप्राय शाथी थयो छे, ते जणाव्यु नथी. घाणीभूषणमा प्रथम छ मात्रा लावता केहेछे, एटले गमे तेवी बे मात्रा उपर एक डगण लावतां प्रारंभमाँ For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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