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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना. वैदिक छंद प्रकरणमां चार वेदमा जे जे छंदो वपरायला छे तेमना बंधारणना नियमो, उदाहरण अने तेपर जोइती टीका वांचनारने बराबर समजाय ए माटे आपवामां आवेल छे. वैदिक छंदोनां जे उदाहरण आप्यां छे तेनो गूजराती अर्थ पण ते साथे आपेल छे. आ भाग जूदो प्रसिद्ध करवामां आवशे ___ मात्रामेळ छंदोना समजाति, दंडक, अर्द्ध समजाति, शिखाजाति, आर्या, प्रचुर्णगीति अने विषम जाति, मात्रासमक, वैतालीय, अने गलितक एवा पेटाभेद पाडेला छे. वर्णमेळ छंदना पेटा विभागमा क्रमे समवृत्त, दंडक, अर्द्ध समवृत्त, संकीर्ण, विषमवृत्त, संकीर्ण असंकीर्ण अने अनुष्टुप् वक्त्रादि भेद छे, विदेशी छंदोमुं ज्ञान आपणने केटलीक वेळा घणा संसर्गमां आव्याथी जाणवायूँ मन थायछे तेथी दक्षिण भणीना केटलाक छंद आपणी गूजराती भाषामा प्रचलित थया छे तेनुं माप अने उदाहरण केटलाक मराठी ग्रंथोना आधारे लइने दाखल करेलुं छे. छेल्लो भाग प्रस्तारादि प्रकरणनो छे तेमा मात्रा, वर्ण अने तजन्य गणनो प्रस्तार शी रीते करवो तेनी पृथक पृथक् रीतिओ, उदाहरणो अने कोष्टको तेमां आपवामां आव्यां छे; अने आर्या, दुहा तथा अनुष्टुप्नां प्रस्तारादि प्रकरण केटलाक प्राचीन पिंगलशास्त्रकारोए पृथक् पृथक् पाडेलां छे तेथी तेमने तेवांज रूपमां गणप्रस्तारना उदाहरणमा मूकवामां आव्यां छे. ___ मारी आ विषय संकलना प्राचीन छंदःशास्त्रकारोथी केटलेक अंशे भिन्न छे, एम जोतांवांत वांचनारने जाणवामां आवशे; तेथी तेम करवानुं प्रयोजन अत्र जणाववा- ठीक पडशे एवं जाणी आपुंछं. छंदःप्रस्तारादि प्राचीन ग्रंथोमां प्रथम वैदिकछंद अने तेना पाछळ क्रमे गणछंद, मात्राछंद अने वर्णछंद अने प्रस्तारादि For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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