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प्रस्तावना.
हतुं वळी केटला एक एम पण केलेछे के, पिंगलनागनो उपासक कोइ समर्थ छंदोज्ञान धरावनार ब्राह्मण हतो, तेणे शंभु नामना पोताना गुरु पांसेवी ए शास्त्र शीखी पोताना उपास्य देवनी प्रशस्ति माटे छंदःशास्त्राने पिंगलं नाम आप्युं छे, ने त्यारथी ते नाम जगत्मां प्रवर्त्तुं छे. वळी केटलाक एम केहेले के पिंगल ए नाम कल्पित छे. ए नामनो कोई मनुष्य नथी थइ भयो, परंतु (पिं= पेंड, ग=गुरु, ल=लघु. ) गुरू अने लघुना पिंड मां व्याख्यान छे एक ए शब्दनो अर्थ थायले. ग तेम हो; तोपण ए पिंगलसूत्र पछी छंदः शास्त्रपर जे जे ग्रंथो रचाया छे ते सचळा सामान्य रीते पिंगलनामे ओळखायचे तेवी एम तो कल्पना धायछे के ए नाम तेवा नामना कोइ छंदः शात्रकार परथी प्रव होय, वा सूत्र ग्रंथकार गूढार्थ दर्शक पिंगल एवं तेने नाम आप्युं होय अने तेथी तेमी प्रवृत्ति थइ होय एम मानी लेवामां कशुं बाधकारक नथी. तक्षक ( ताक) वंशनां उत्पन्न थयेला नागराजने केटाक पिंगल तरीके मानेछे ए योग्य नथी. पिंगल अने नागराज ए भिन्न भिन्न होत्रा जोइये. पण नागकुळ अने ताककुळ एकज - होय तो ए वंशमां उत्पन्न भये कोइ तेनो मूळ पुरुष ए नामे थयो होय ते पिंगलाचार्य होय एम संभवे खरुं. *
गीर्वाणवाणीमा अने भाषामा पिंगलाचार्यआदि घणा आचार्यो अने कविओए छंदःशास्त्र विषे घणा ग्रंथो रच्या है, तो आ ग्रंथनी शी अगत्य हती, एम कोइ प्रश्न करे, तो तेना उत्त - रमां मारे जगावं जोइये के, आपणी मातृभाषा सांप्रत का
* ताक वंशना राजाओ काश्मिर सिंध अने पंजाबपर जूना वखतमां राज चलावी गया छे. तेमां काश्मिरना राजाओ तो नागना पूजकी पण हता तेथी पिंगलने ए वंशमां उत्पन्न थएल मानवामां आव 'तो ए ग्रंथ ए देशमां पेहेलां रचायो हो एम मानी शकाय
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