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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसके बाद काँच के टूकड़े मुहँ में डाले, तत्पश्चात् पत्त्थर पेट में उतार दिये। सब बच्चे उत्सूकता और आश्चर्य भरी नजरों से सब देख रहे थे । खेल खत्म हुआ। जादुगर ने बालकों से कहा। बच्चों अब तुम मुझे आठआना रूपया दो । जिससे मैं कुछ खा कर पेट भर सकूं। एक बालक चिल्ला उठा बाप रें! इतना सारा खा लिया फिर भी ओर कुछ खाना है ! इसके पेट में और कितनी जगह बची होगी! जिज्ञासु (प्रश्नकार) को जादुगर समझना । शायद जादुगर का पेट इन चीजों से भर सकता है परन्तु जिज्ञासु तत्त्वपिपासु का पेट बहुत ज्ञान मिलने पर भी भरता नहीं है। संसार में पुलिस चोर को पकड़ने में सक्षम होती है वैसे अज्ञान को मिटाने में ज्ञान समर्थ होता है । हिताहित का बोध ज्ञान से ही होता है अतः ज्ञान रूचि को विस्तृत करना चाहिए । ज्ञान की रूचि के बिना ज्ञानार्जन का प्रयत्न नहीं होगा । ज्ञान की रूचि के बिना ज्ञान पाने के लिए कौन मनुष्य प्रयास करता है? ज्ञान और अज्ञान से एक ही क्रिया करोड़ की और कोड़ी की हो जाती है, तब कौन ऐसा बेवकूफ होगा जो ज्ञान पाने का इच्छुक नहीं होगा? तीर्थंकर बनने के (बीस स्थानक ) बीस कारण में भी ज्ञानपद हैं, तो ज्ञान रूचि का होना अति जरूरी है और इस ज्ञान / तत्त्व चिंतन से जबरदस्त कर्मसंवर और कर्म निर्जरा कर के कर्म की ताकत को निर्मूल कर सकते है। ज्ञान आत्मा का स्वभाव है और अक्षय, अनंत आनंद का कारण है। कुछ विद्यार्थियों में बात हो रही थी । किस विषय में अध्ययन करके आगे बढ़ें, डिग्री प्राप्त करें, आगे क्या बनना चाहते है ? और क्यों? पहले ने कहा, मैं कॉमर्स करके बड़ा व्यापारी बनूंगा । भेलसेल, कालाबाजार, नकली चीजों से कुछ वर्षो में ही धनवान बन जाऊंगा। दूसरा बोला मैं कॉमर्स करके बैंक में एकाउन्टेन्ट बनूंगा। मेरे पिताजी भी बैंक में ही नौकरी करते है, इसलिए वहां मेरा नंबर लगना और भी आसान हो जाएगा। पश्चात् मैं केशियर बैंक मैनेजर, चपरासी आदि के साथ मिलकर लाखों हजारों का घोटाला करके चुटकी में देखते ही देखते करोड़पति बन जाऊंगा। तीसरे ने कहा मैं चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट बनुंगा । किसी कंपनी के हिसाब किताब में थोड़ा सा इधर उधर करके हजारों की फिस 1 89 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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