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कोमल पौधे के लिए प्रशंसा तेजाब के समान होती है। एक बार प्रशंसा मिली कि विकाश का पौधा कुम्हलाता है। सचमुच मनुष्य को प्रशंसा कितनी अधिक प्रिय होती है? फिर भी वह कितनी बडी दुश्मन है? बोल ढब्बू इस गली में सबसे बुद्धिमान कौन है ? देख चिन्टू । मैं अपनी प्रशंसा करना उचित नहीं समझता हूँ। अच्छा फिर ये तो बता दे कि इस गली में मुर्ख कौन, बुद्ध कौन ? अरे पिन्टू तेरी निंदा करनी मैं पसन्द नहीं करता । कैसी लगी पिन्टू की बात । यह अपनी प्रशंसा करनी और दूसरे की निंदा करने की मना कर रहा है और ऐसा कहते कहते परनिंदा भी कर लेता है।
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एक बार कौवे को कहीं से पुरी मिल गई, धी से लबालब और मीठी-मीठी थी । कौवे की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । वह पुरी को लेकर जंगल के किसी एक पेड़ की डाली पर बैठ गया। कौवे की चौंच (मुँह) में स्थित पुरी को देखकर जमीन पर स्थित शियार के मुँह में पानी आ गया। किसी भी हालत में इस पुरी को पाना है । यह शियार का निश्चय था किन्तु शियार के मुँह से पुरी को पाना कैसे? यह तो भोला कबूतर नहीं हैं कौवा हैं, पर मैं भी कम नहीं हूँ, मैं भी कौवें की कमजोरी जानता हूँ। उस कौवे के मुँह से प्रेमपूर्वक पुरी छीन लेना मुझे आता है। शियार ने नीचे से कहा: कौवा भैय्या ! आज तक मैने आपकी प्रशंसा बहुत सुनी है, परन्तु कभी देखने का मौका नहीं • मिला था। आज पहली ही बार आपको रू-ब-रू में देखने का मौका मिला है, सौभाग्य मिला है। वाह! क्या अद्भूत रूप! सुना था उससे भी अधिक है! सचमुच विधाता ने फुरसत के पलों में तुम्हें बनाया होगा। जब आपका रूप इतना सुन्दर है तो फिर आवाज कितनी मीठी होगी? कोई गीत सुनाइए, मुझे आपकी मधुर आवाज सुननी है। किसी दिन कभी प्रशंसा नहीं सुनी थी इस कारण से कौवा तो फुल गया । सचमुच स्वप्रशंसा से मीठा ओर कुछ नहीं है । कौवा गीत सुनाने लगा का......का... .का. ....बोलते ही पुरी नीचे गिर गई और शियार उसे उठा कर चला गया। अब कौवे को अकल आई कि शियार मेरी प्रशंसा क्यों कर रहा था ? कहा है स्वप्रशंसा सुनकर आदमी पगला
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