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हो जाएगा। भाई-बहन, पोता-पोती, माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, पुत्र-पुत्री, कुटुम्ब परिवार, समाज, स्कूल, घर वगैरह भी निरन्तर मदद करते रहते है। कइयों की मदद से जी रहे आदमी को यह कहना कि दूसरे की आशा रखनी नहीं। पर की आशा, सदा निराशा, बड़ा बेहुदा लगता है । अन्य की सहायता से जीवन टीका हुआ है। यह अलग बात है और किसी की आशा अपेक्षा रखकर बैठे रहना अलग बात है। पर की आशा जितनी कम उतना सुख अधिक और पर की आशा जितनी ज्यादा उतना दुःख अधिक । जो आशा का दास है, वह विश्व का गुलाम है। जिसने आशा पर विजय प्राप्त कर ली है, उसने समस्त विश्व पर विजय प्राप्त कर ली है। यदि मन आशाओं कामनाओं से भरा हो तो महान ऐश्वर्यशाली इन्द्र और ऋद्धि से सम्पन्न चक्रवर्ती भी सुखी नहीं है और तृष्णाओं से मुक्त बन गए हो तो पास में कुछ भी बाह्रय सम्पत्ति न होने पर भी व्यक्ति परम सुख की अनुभूति कर सकता है। इन्द्र-चक्रवर्ती और राजा के चित्त में हमेशा अनेक कार्यों की चिंता बनी रहती है। वह शत्रु आदि के भय से व्याकुल होते है। धन कुबेर भी सुखी नहीं है, क्योंकि वह भी अपने इन्द्र के अधीन परतन्त्र होता है, देवों को वश में रखने वाला इन्द्र भी सुखी नहीं है, क्योंकि वह विषयातुर रहता है। विषयों में रागादि के कारण उसका सहज सुख नष्ट हो जाता है। इन कारणों से आशा रहित जीवन ही सुखी है, ऐसा सिद्ध होता है। लखनौ के नवाब वाजिद अलीशाह को सुख समृद्धि की कमी नहीं थी, धन दौलत सामग्रियों के ढ़ेर थे, और वे बड़े शौकीन थे । इत्तर का तो उन्हें गजब का शोख था। इतना अधिक शोख था कि अपने घोड़े की पूंछ में भी इत्तर लगाते थे। एक दिन समाचार मिले और खतरे की घंटी भी बजने लगी कि अंग्रेजों ने शहर को चारों तरफ से घेर लिया है। जल्द से जल्द गुप्त मार्ग से भाग जाओ । वाजिद अलीशाह भागने की जल्दि - जल्दि तैयारी करने लगा । उसे हर रोज महबूब नामक नौकर मोजड़ी पहनाया करता था। उसने मेहबूब को आवाज दी महेबू... महेबूब ...... महेबूब .......मुझे बाहर जाना है मोजडी पहना दे। परन्तु वहाँ मेहबूब तो था नहीं क्योंकि वह तो स्वबचाव के लिए कभी
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