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ग्राह्यम् हितमपि बालात्
"बालक से भी हितकर चीज स्वीकारनी" चाणक्य कहता है कि कुड़ादान अगर कचरे-गंदगी से भरा हो, परन्तु उसमें अगर सोना गिरा हो तो ले लो, गंदगी की चिंतामत करो। छास अगर खट्टी हो परन्तु उसमें अगर मक्खन हो तो ले लो, खटास की चिंतामत करो। पौधों में अगर फुल है तो उन्हें ले लो काटों की चिन्ता मत करो। वृक्ष में अगर फल है तो उन्हे ले लो शूलों की चिन्ता मत करो। कुल अगर नीच हो, परन्तु उत्तम कन्या हो तो ले लो, कुल की चिंता मत करो। बालक अगर छोटा हो, परन्तु उसकी बात अगर हितकर हो स्वीकार कर लो। उसकी उम्र की चिंता मत करो। सत्पुरूषोंने कहा है। यदि तुम्हें कहीं कुछ अच्छाई लगे,जो किसी में भी हो, उसे अपना लो, ग्रहण कर लो। चाहे वह अच्छाई जीव में हो जड़ में हो, वृक्ष में हो व्यक्ति में हो, पशु में हो पक्षी में हो, वृद्ध में हो बालक में हो तब भी ले लो ये अच्छाई तुम्हें काम लगेगी। ये मत सोचो कि ऐसे नीच तुच्छ और छोटे से क्युं ग्रहण करूं। छोटे के पास अच्छाई होने से छोटी नहीं हो जाती है और गलत के पास अच्छाई होने से गलत भी नहीं हो जाती है। जैसे आपके हाथ में गजमुक्ता/मोती है, आप चलते-चलते उन्हें हाथ में लेकर/उठाकर कहीं जा रहे हैं। उस वक्त आपके हाथों से मोती अचानक गिर जाय, और वह भी किचड़ -गोबर में गिरे तो क्या किचड़-गोबर में गिरने से मोती का अवमूल्यन हो जाएगा। नहीं किचड़ में गिरने से मोती के मूल्य में कमी नहीं आती। हिरा भी किसी ऐसी ही जगह गिर जाय तो क्या उसके मूल्य में फर्क आ जाएगा? नहीं उसके मूल्य में कोई फर्क नहीं आएगा वह तो मूल्यवान ही रहेगा। वो मोती और हीरा गन्दगी में गिर जाने पर भी अपना मूल्य बरकरार रखते है। वैसे गलत व्यक्ति के पास अच्छाई होने से अशुद्ध या अहितकर नहीं बनती। वह तो शुद्ध
और हितकर ही रहेगी। कहते हैं कि दत्तात्रय के चौबिस गुरू थे इन चौबिस में पशु-पक्षी बगेरह भी थे। जहाँ ज्ञान मिला सीखने को मिला जानने को मिला,
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