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पडी । इसलिए तो शास्त्रकार कहते हैं, गुणी बनना सरल है परन्तु गुणप्रेमी बनना मुश्किल है। हृदय में गुणों के प्रति आकर्षण होना ही चाहिए। अधिकांश लोगों को गुणों का नहीं परन्तु शक्ति पुण्य, धन, सत्ता या भौतिक पदार्थों का आकर्षण होता है। उसके पीछे हम भागते हैं। जहाँ पुण्य वैभव दिखता है वहाँ हम दौड जाते है। पुण्य वैभव को ही गुण, वैभव समझ लेते है परन्तु पुण्य वैभव हो वहाँ गुण वैभव हो ही, यह जरूरी नहीं है। अकबर के दरबार में बीरबल का अपना ऊँचा स्थान था। बादशाह अकबर भी उसे आदर की दृष्टि से देखते थे। कहीं भी समस्या खड़ी होने पर बीरबल की सलाह अवश्य लेते थे । बीरबल की ख्याति चारों तरफ बढ़ रही है। अकबर बादशाह के ही दरबार में काम करने वाले एक हजाम को बीरबल के प्रति भारी इर्ष्या थी । बीरबल की प्रसिद्धि उससे सही नहीं जा रही थी। इस कारण से वह बीरबल को किसी भी उपाय से खत्म करना चाहता था उस के दिल में इर्ष्या की आग जल रही थी। वह बीरबल को भस्मासात् करना चाहता था, परन्तु उसे पता नहीं था कि उसके हृदय में रही हुई इर्ष्या की आग उसे खुद को ही खत्म कर देगी । इर्ष्यालु हिताहित का विचार नहीं कर पाता है। बीरबल को खत्म करने के लिए इर्ष्यालु हजाम ने एक योजना ( घड़ी) बनाई ।
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एक बार वह अवसर देखकर बादशाह के बैठक कक्ष में पहुँचा गया। महाराज उस दिन खुश-मिजाज में बैठे थे । अवसर देखकर हजाम ने कहा ! जहाँपनाह आपके अब्बाजान को जन्नत / स्वर्ग में गये वर्षों बीत चूके हैं। आप तो यहाँ मौज उड़ा रहे हो, अब्बाजन के कुछ समाचार भी नहीं मंगवाए ? बादशाह अकबर ने कहा, भाई तुम्हारी बात तो ठिक है, परन्तु जन्नत / स्वर्ग में किसे और कैसे भेजा जाय? वह बोला जहाँपनाह मेरे पास एक मंत्र है स्वर्ग में भेजने की व्यवस्था हो जाएगी, चिता / आग में किसी के प्रवेश करने के बाद मैं मंत्र पढुंगा तो वह व्यक्ति धुएँ के साथ स्वर्ग में पहुँच जाएगा। परन्तु स्वर्ग में किसे भेजा जाय.... हजाम बोला । दुसरा कोई व्यक्ति तुम्हारी नजर में है ? बादशाह बोला । जहाँपनाह मेरी नजर तो बीरबल पर जाकर ठहरती हैं, उसमें
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