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है। नादिरशाह जब दिल्ली में कत्लेआम कर रहा था, उस समय दिल्ली के बादशाह आलम के हाथ-पाँव फूल गए थे। नादिर के क्रोध से डर के मारे नर-नारी थरथरा रहे थे, जल, भूनकर खाक हो रहे थे। उनकी क्रोधाग्नि को शान्त करने की किसी में सामर्थ्य नहीं थी। जो भी नादिर के सामने जाता वह तलवार के घाट उतार दिया जाता था। दिल्ली में खून की नदी बह रही थी। नादिर के सेनापति भी इस कृत्य से दंग थे पर किसी में सामर्थ्य / हिम्मत नहीं थी कि उसके खिलाफ एक शब्द भी कोई बोल सके । तब दिल्ली के राजा का मंत्री जो साहित्यिक था, जब उसने हत्या कांड का दृष्य देखा तो उसका दिल रो पड़ा। वह अपनी जान हथेली में लिए नादिर के पास पहुँचा और उसने कहा! आपके प्रेम रूपि तलवार ने किसी को जीवित नहीं छोड़ा अब तो आपके लिए एक ही उपाय है कि आप मूर्दो को फिर जीवित कर दें और उन्हें पुनः मारना प्रारम्भ करें।
कसे न मादकी दीगरबतेगेनाब कुशी,
मगर कि जिन्दगी कुनीखल्काराबाज कुशी।। कहते हैं कि यह शेर सुनते ही नादिर के विचार बदल गए और उसने उसी समय हत्याकांड बंद करवा दिया। साहित्य समाज का दर्पण है । साहित्य समाज के विचारों का सही प्रतिबिम्ब है। साहित्य युवावस्था में मार्ग दर्शक है, वृद्धावस्था में आनन्ददायक है, बचपन में मनोरंजन है। वह एक अद्भूत शिक्षक है। शिक्षक थप्पड़ मारता है, कठोर शब्दों में फटकारता है और पैसे भी लेता है। पर यह न मारता है न कठोर शब्दों में फटकारता है न पैसे ही लेता है, परन्तु शिक्षक की तरह सीखाता है, उपदेश देता है, शिक्षा देता है। साहित्य के लिए आस्टिन फिलिप्स ने कहा था, कपड़े भले ही पुराने पहनो, पर किताबें नवीन-नवीन खरीदो। लॉर्ड मेकोलेने ने कहा यदि मुझे कोई सम्राट बनने के लिए कहे, और साथ ही यह शर्त भी रखे कि तुम पुस्तकें (साहित्य) नहीं पढ़ सकोगे तो मैं राज्य को ठुकरा दूंगा और गरीब बनकर भी पुस्तकें पढूंगा । लोग फर्निचर से घर सजाते हैं। मेरा कहना है आप सत्साहित्य से घर को सजाएँ।
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