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ध्येया आत्मबोधनिष्ठा
“आत्मज्ञान की निष्ठा का ध्येय रखना" हर व्यापारी स्वयं के आय-व्यय, हिसाब-किताब का लेखा जोखा निकालता है, परन्तु यह कैसा दुर्भाग्य है कि वह खुद के कृत्यों का हिसाब-किताब नहीं निकालता है। उसके बहीखाते में कुछ गड़बड़ी हो जाएगी तो वह उसे अनेक बार देखेगा, उसके बारे में सोचेगा परन्तु आत्मा के हिसाब-किताब के प्रति इतना लापरवाह है कि एकाध बार भी अपनी आत्मा के हिसाब किताब को नहीं देखता, मगर इतना अवश्य याद रखना कि अगर धन की कमाई के हिसाब-किताब में जरा सी गलती हो गई तो चलेगा। परन्तु यदि आत्मा का हिसाब-किताब बिगड़ गया तो कितने ही भव बिगड़ जायेंगे। इसलिए मैं आपसे कह रहा हूँ कि अपनी आत्मा का भी हिसाब-किताब देखा करो, अगर आत्मा का लेखा-जोखा मिल गया, शुद्ध हो गया तो आप पावन हो जाओगे। अब तक अनंत तीर्थंकरों ने यही बात कही हैं कि आत्मा सच्चिदानंदमय है। अजर हैं, अमर हैं और अविनाशी हैं। लेकिन संसारी आत्मा की यह कैसी दयनीय स्थिति? अहो! अविनाशी अजर अमर आत्मा की यह कैसी दुर्दशा? यह प्रतिक्षण अनेक यतनाओं का भोग बन रही हैं। कभी जन्म की पीड़ा भोगती हैं, तो कभी वृद्धावस्था से जर्जरित बन जाती है। प्रश्न होता हैं सच्चिदानंदमय आत्मा की ऐसी हालत क्यों? कारण एक ही है, इस सच्चिदानंदमयी आत्मा ने पर घर को खुद का मान लिया है और उस पर घर में अपना अधिकार/स्वामित्व मान लिया है। कोई अनजान व्यक्ति किसी अपरिचित व्यक्ति के घर में घूस जाय तो उसकी क्या हालत होती हैं? और इसके साथ ही उस अज्ञात घर में अपना स्वामित्व मान ले तो? किसी अनजान घर में बिना पूछे घुसना अपराध ही है। अनजान घर में खुद का स्वामित्व मान कर बैठ जाना भयंकर अपराध है। इसी तरह से हमें इस सच्चाई को समझना है। यह देह आत्मा का घर नहीं है। आत्मा का घर तो मोक्ष ही है। इस देह में
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