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ने प्रभाद के पाँच प्रकार कहे हैं
मज्जं, विसय, कसाया, निहा, विकहाय पंचमी भणिया। एएपंच पमाया, जीवं पाडेन्ति संसारे ।।
(1) मद, (2) विषय, (3) कषाय, (4) निद्रा और (5) विकथा ये पाँच प्रकार के प्रमाद हैं जो इस जीव को संसार में परिभ्रमण कराते हैं, इससे मुक्त नहीं होने देतें इनमें से एक-एक प्रमाद भयंकर है, यदि पाँचों ही एक आदमी में इकट्ठे हो जाये तो फिर उस आदमी की दुर्गति का कहना ही क्या? (1) सबसे अधिक खतरनाक है मद/अभिमान । मद से व्यक्ति इतना मतवाला बन जाता है कि खुद भगवान भी सन्मार्ग पर नहीं ला सकते। आगमों में आठ प्रकार के मद कहे गये हैं। ज्ञानं पूजा, कुलंजाति, बलमृद्धिं, तपोवपुः" । (१) ज्ञानमद (2) पूजामद (3) कुलमद (4) जातिमद (5) बलमद (6) ऋद्धिमद (7) तपमद और (8) रूपमद । ये आठोंमद विवेक बुद्धि की शून्यता में उत्पन्न होते हैं एवं आत्मदर्शन में बाधक बनते हैं, अतः इन सभी प्रकार के मदों से हमें बचना चाहिए, तभी अपना कल्याण संभव है। यह मद/अभिमान मनुष्य के लिए दुःखों का सबसे बड़ा कारण है।
एक बार एक संत किसी राजा के महल में भिक्षार्थ पहुँचें। राजा उन्हें देखकर गद्गद् हो गया और कहा कि संत प्रवर! मैं आज बहुत खुश हूँ अतः आप जो भी मांगे वह अपनी सर्वप्रिय वस्तु भी देने को तैयार हूँ। इस पर मुनि ने कहा- राज..... जो आपकी सर्वाधिक प्रिय वस्तु हो, वह आप ही सोचकर दे दिजिये। तब राजा ने राज्यकोष देना चाहा, किन्तु मुनि ने कहा- राजन्! यह तो जनता/प्रजा की वस्तु है, आप की नहीं है, अपनी ही कोई वस्तु दिजिये। तब राजा ने राजमुकुट, राजमहलादि सब कुछ देना चाहा। यहाँ तक कि अपना शरीर तक दे देना चाहा किन्तु मुनि ने कहा- राजन्! इन पर तो आपके परिवार वालों का अधिकार है। यदि आप देना ही चाहते हैं तो आपकी सर्वप्रिय वस्तु है, अपना गर्व या अहंकार, वही दे दीजिए। मुनि के ऐसा कहने पर राजा की आंखे खुल गई और वह अहंकार का दान कर बोझ मुक्त और बन्धन रहित
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