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देने के लिए मल्लिकुमारी ने अपनी एक प्रतिकृति/ प्रतिमा का निर्माण करवाया था। और रोजाना उसमें दो चार कौर भोजन डाल दिया करती थी। उस प्रतिकृति में वह कई दिनों से भोजन डाल रही थी। प्रतिकृति में कई दिनों से पड़ा-पड़ा भोजन भयंकर बदबू मारने लग गया। मल्लिकुमारी के पिता बड़े चिंतित थे। शादी करने की इच्छा से आए छह राजाओं के झमेले से बचने के लिए मल्लिकुमारी ने अपने पिता से कहा- पिताजी! आप छह के छह राजकुमारों के पास यह सन्देश भिजवा दिजिए कि मल्लिकुमारी शादी से पहले आप को देखना चाहती है, मिलना चाहती है। यह सन्देशा एक-एक राजा के पास अलग-अलग भिजवाया जाए। उन छहों राजकुमारों को अलग-अलग रास्तों से राजकुमारी के कक्ष में लाया गया। कक्ष में वह प्रतिकृति रखी हुई थी। उन राजाओं ने इसे हकीकत समझा और कहने लगे। वाह! क्या रूप है, क्या सौन्दर्य है। बहुत खूबसूरत । इससे तो मैं ही शादी करूंगा। हालांकि राजकक्ष में स्वयं राजकुमारी नहीं है, उसकी प्रतिकृती है। तभी हठात् उस कक्ष में राजकुमारी स्वयं आयी। राजकुमार उसे देखकर घबरा गये। यह कैसी माया, एक सरीखे दो रूप। मल्लिकुमारी ने कक्ष में प्रवेश करते ही उस प्रतिमा के उपर से ढ़क्कन हटाया। उन राजकुमारों को बड़ी शर्म आयी कि जिसे हम राजकुमारी समझते थे, वह वास्तव में उसकी प्रतिकृति थी। मूर्ति का ढक्कन खुलने से उसमें से भयंकर दुर्गन्ध आने लगी। सारा कमरा भयंकर दुर्गन्ध से भर गया । वे सभी राजकुमार अपनी नाक भौं सिकौड़ने लगे। तभी राजकुमारी ने कहा, आप नाक क्यों बंद कर रहे हो? सभी राजकुमारों ने एक ही स्वर में कहा यह भयंकर दुर्गन्ध सही नहीं जा रही हैं। मल्लिकुमारी ने कहा आप कितने सम्मोहित है। जिसे आपने मल्लि समझा, वह मूर्ति थी और जिस पर आप लुभाए, उससे उपजी दुगन्र्ध से आप अपनी नाक पर रूमाल रखने लगे। मल्लिकुमारी ने कहा जैसी यह मूर्ति है, वैसी ही मैं भी हूँ। इस शरीर में यही खाद्य पदार्थ समाता है। मेरे शरीर के अंदर भी यही गदंगी-दुर्गन्ध रही हुई है। यह शरीर संसार का सबसे अपवित्र चोला है। जिस देह के प्रति तुम राग कर रहे हो, उस शरीर के भीतर रही गंदगी का भी विचार करो, तुम्हारे हृदय में रहा
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