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बहुत समय बाद जब पांडव लौटे तो वह तुंबी माँ को सौंप दी। माता कुंती ने उस तुंबी की सब्जी बनाकर सभी की थाली में (रख दी) दे दी। सब्जी मुँह में डालते ही पाँचों ही पांडव थू..... ....... ..... करने लगे। क्यों? क्या हुआ? थू.............. क्यों कर रहे हो? माता कुंती ने पूछा । माँ यह सब्जी तो कड़वा जहर है। माँ ने कहा उस कड़वी तुंबी का ही ये शाक है। मुझे ऐसा विश्वास था कि अड़सठ तीर्थो में स्नान कराने से वह मीठी हो गई होगी। क्या अभी भी वह कड़वी ही है? माँ! वह तो कड़वी ही रहेगी न! बाहय स्नान व्यर्थ
है।
हे पांडु पुत्र! आत्मा ही नदी है, संयम के जल से भरी हुई नदी । वहाँ ही तू स्नान कर क्योंकि बाहय जल से अंतरात्मा शुद्ध नहीं हो सकती।
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