SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीविंशतिकाप्रकरणे श्रीमद्धरिभद्रसूरिवर्यनिर्मिता विंशतिः विंशिकाः अधिकार विशिका -.- mom CAR नमिऊण वीयरायं सव्वन्नु तियसनाहकयपूयं । जहनायवत्थुवाइं सिद्धं सिद्धालयं वीरं ॥१॥ वुच्छं केइ पयत्थे लोगिगलोगुत्तरे समासेण । लोगागमाणुसारा मंदमइविवोहणट्ठाए ॥२॥ सुंदरमिइ अन्नेहिवि भणियं चक यं च किंचि वत्थुति । अन्नेहिवि भणियव्वं कायव्वं चेति मग्गोऽयं ॥३॥ इहरा उ कुसलभणिईण चिट्ठियाणं च इत्थ वुच्छेओ । एवं खलु धम्मोवि हु सन्वेण कओ ण कायव्यो ॥४अन्ने आसायणाओ महाणुभावाण पुरिससीहाण । तम्हा सत्तऽणुरूवं पुरिसेण हिए पयइयव्वं ॥५॥ तेसिं | बहुमाणाओ ससत्तिओ कुसलसेवणाओ य । जुत्तमिणं आसेवियगुरुकुलपरिदिट्ठसमयाणं ॥६॥ जत्तो उद्धारो खलु अहिगाराणं | सुयाओ ण उ तस्स । इय बुच्छेओ तद्देसदसणा कोउगपवित्ती ॥ ७॥ इको उण इह दोसो जं जायइ खलजणस्स पीडत्ति । तहवि: | पयट्टो इत्थं दटुं सुयणाण मइतोसं ॥ ८॥ तत्तोविय जं कुसलं तत्तो तेसिपि होहिइ ण पीडा । सुद्धासया पबत्ती सत्थे निहोसिया भणिया ॥९॥ इहरा छउमत्थेणं पढमं न कयाइ कुसलमग्गम्मि । इत्थं पट्टियव्वं सम्मति कयं पसंगेण ॥ १०॥ अहिगारसूयणा खलु १ लोगाणादित्तमेव बोद्धव्यं २। कुलनीइलोगधम्मा २ सुद्धोऽवि य चरमपरियट्टो ४ ॥११॥ तब्बीजाइकमोऽविय ५ तं पुण सम्मत्तमेव विन्नओ ६। दाणविही य तओ खलु ७ परमो पूयाविही चेव ८ ॥ १२ ॥ सावगधम्मो य तओ ९ तप्पडिमाओ य ॥१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy