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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का श्रीविशेषण | सिद्धाणं? ॥ २०८ ॥ जुगवाणुवओगित्ते वुच्चइ चउणाणिणो विणा हेउं । विगमुप्पायं जह तह जिणस्स जइ होज्ज को दोसो ? वत्यां विशेष: | ॥२०९॥ अहवा खीणावरणे जिणम्मि णिकारणावरणदोसो। ण उ जुज्जइ छउमत्थ संतावरणेत्ति ते बुद्धी ॥२१०॥ भण्णइ छउमत्थस्सवि केवल ज्ञान ! णाणेगयरोवओगभाविते । संतेऽवि खओवसमे सेसावरणं न संभवइ ॥ २११ ॥ जेणं जया ण जाणइ गृणमुइण्णं तदा तदावरणं । है। ॥१८॥ दर्शन तदु| अध संतेण ण जाणइ मिच्छावरणकखओवसमे ॥ २१२ ॥ एवं जं कालं उवउज्जइ जम्मि २ णाणम्मि । तं तं कालं जुत्तो तस्सा पयोग वरणक्खओवसमो ॥ २१३ ॥ ठिइकालविसंवाओ नाणाणं णविअ ते चउण्णाणी । एवं सति छउपत्थो अस्थि ण जइ दंसणी समए । ॥ २१४ ॥ पासन्तो णवि जाणइ जाणं व ण पासई जइ जिणिंदो । एवं ण कयाइवि सो सव्वण्णू सम्बदरिसी य ॥२१५॥ जुगवभजाणतोऽविहु चउहिवि णाणेहिं जह चउण्णाणी । भण्णइ तहेव अरहा सव्यण्णू सव्वदरिसी य ॥ २१६ ॥ तुल्ले उभयावरणकखयम्मि पुच्चयरमुब्भवो कस्स? । दुविहुवओगाभावे जिणस्स जुगवंति चोएइ ॥ २१७ ।। भण्णइ ण एस णियमो जुगवुप्पण्णेसु जुगमेवेह । होयव्वं उबओगेण एत्थ सुणे ताव दिद्रुतं ॥ २१८ ॥ जह जुगवुप्पत्तीइवि मुत्ते सम्मत्तमइसुयाईणं । णस्थि जुगवोवओगो सधेसु तहेब केवलिणो ।। २१९ ।। भणियंपि य पन्नत्तिपण्णवणाईसु जह जिणो समयं । जंजाणइ णवि पासइ तं अणुरयणप्पभाइाण ॥ २२० ॥ इवसहमतुप्पच्चयलोवा तं विंति केइ छउमत्थों । अण्णे पुण परतित्थियवत्तव्यमिणपि जंपंति ॥२२१ ॥ जे छउम 13॥१८॥ स्थाऽऽहोहियपरमावहिणो विसेसिउँ कर्मओ । णिद्दिसइ केवलित्तेण तस्स छउमत्थया नत्थि ॥ २२२ ॥ण य पासइ अणुमण्णो १. ०प्पाओ. २ पुण. ३ तो.४ ०मत्थे. ५ बोहि. ६ कमसो. ७ मण्णे For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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