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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SARH श्रीविशेषण (सूर्य. २९० भ. ५७७) वदृच्छेदो कइवयदिवसे धुवराहुणो विमाणस्स । दीसइ परं न दीसइ जह गहणे पव्वराहुस्स ॥१११॥ वत्यां | अच्चत्थेण हि तमसा भिभूय तेज ससी विसुझंतो । तेण ण वट्टच्छेओ गहणे उ तमो उ तमबहुलो ॥ १२२ ॥ ३० । विशेषाः (जी.३७९सूर्य २६३) अद्धकविट्ठागारा उदयत्थमणम्मि किं न दीसति। ससिमराण विमाणा तिरिअक्खेत्तट्ठियाणंपि ॥११३॥ ॥ ११॥ उत्ताणद्धकविढं पेढं किर तदुवरिं च पासाओ । बट्टालेहेण तओ समवट्ट दूरभावाओ ॥ ११४ ॥ ३१ । तिरिअडिओ मयंको राहुविमाणोवरि डिओ कहणु । उरि खंडो दीसइ हेट्ठा खंडो कह ण भवे ॥११५।। आईइ कालपक्ख|स्स उवरिमारधुमक्कमइ चंदं । जं तेण णज्जइ फुड हेट्ठा राहू न चंदस्स ॥११६।। हेट्ठा तमसो सूरो जं किर पुव्वावरि हिओ सोमं । भासइ य तेण दीसइ उवरि खंडो दुपक्खवि ॥ ११७ ॥ ३२ . चउरंगुलमप्पत्तं देसूर्ण जोअणं तयद्धेण । कह राहुविमाणेण ससिणो छाइज्जइ विमाणं? ॥ ११८ ।। सब्वे गहणक्खत्ता रवि-13 ससिमज्झम्मि अह य गहणम्मि । बच्चइ राहुविमाणं सूरविमाणस्स हेतुणं ॥ ११९ ॥ जं गहविमाणमाणं रविससिमझम्मि जं चल गहभगणो । उस्सग्गविहिअमेत्तं सुअम्मि तमसोऽपवाओ अ॥ १२० ॥ ३३। कह व दसुत्तरजोअणसयवाहल्लम्मि जोइसे खेत्ते । जंबुद्दीवाईणं माएज्ज गणिज्जमाणमिणं? ॥१२१।। (जी. ३३४) कोडाकोडी सणंतरन्ति मण्णंति केइ थोपयरा । अण्णे उस्सेहंगुलमाणं काऊण ताराणं ॥ १२२ ॥ ३४ । ॥११॥ कह होति समहिआई चरिमाऽचरिमप्पएसरासीओ। दव्वाई कह व जुज्जइ दवुवयारो पएसेसु ? ॥१२३।। उजुसुत्ताइमयहमिदं पइप्पएसमिह दवपडिवत्ती । देसप्पएसभेओ जह वा धम्मत्थियाईण ॥ १.२४ ॥ ३५ । For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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