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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वत्यां गौतमद्वीपे जलावगा हादि श्रीविशेषण जोअणसहस्समहिअं वणस्सइसरीरमाणमुद्दिढे । तं च किर समुद्दगयं जलरुहनाल हवइ णण्णं ॥ ५॥ उस्सेहंगुलओ त होइ |पमाणंगुलेण य समुद्दो । अवरोप्परओ दोणिवि कहमविरोहीणि होज्ज गहुँ ? ॥६॥ पुढवीपरिणामाई ताई किर सिरिनिवासपउमं व | । तित्थेसु पुण वणस्सइपरिमाणाईपि होज्ज गणु ॥ ७॥ जत्थुस्सेहंगुलओ सहस्समवसेसएसु य जलेसु । वल्लीलयादओचिय है सहस्समायामश्रे होति ॥ ८॥२ ( ठा. २९५) PI पण्णत्तीए भणिया सोलसहस्सा सिहा समुदस्स । सच्चेव दीवसागरपण्णत्तीए सया सत्त ॥ ९॥ उस्सेहे सत्तसए गोअमदीवा४ दओ जलंताओ । उबिद्धा जावइ तमेइ तेरासिएण फुडं ॥१०॥ उस्सेहे सोलसए गोयमदीवादओ निबुडिज्जा । तहवि अण सो ण सच्चो तं पड़ जं बुड्डि भणियाई ॥११॥ किह पुण दोनिवि सच्चा जं सत्त सओवरिं समा चेव । निहाइ सोलससहस्सिया सिहा दस य विच्छिण्णा ॥१२॥ जीवाभिगमे वुड्डी जा सा तं पप्प खेत्तगणियं च । कण्णगईए णेयं लवणाभन्बस्स खेत्तस्स 8॥ १३ ॥ जइ पंचणउइजोअणसहस्साई गंतूण सत्त जोअणसयाई उस्सेहं लब्भामो बारसजोयणसहस्से गंतूण गोयमदीवे किमुस्सेहं लब्भामो ?, आगतं अट्ठासीइ जोअणाई चत्तालीसं च पंचाणउइभागा जोअणस्स, एयं जंबुद्दीवंतेणं जले णिबुडं दीवस्स, उवरिपि एत्तिय चेव ऊसिय जलंताओ अद्धजोअणं च, चउवीस जोअणसहस्साई गतूणं लद्धं छावत्तरं जोअणसयं असीई च पंचा|णउइभागा जोअणस्स, एवं लवणसमुदंतेणं निबुडं दीवस्स, दो कोसे ऊसिओ जलंताओ, जीवाभिगमे पंचाणउइ पंचाणउइ अंगुलाई (१)गु उ (२) निवुइजा (३) बुद्धि. RRERAऊर RECORRECACRORSCRRESS For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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