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श्रीयशोदे
तो गुरुभणिओ विसुद्धपरिणामो । वंदणपुव्वं विहिणा भुजइ तं संदिसावेउं ॥१२७। जो पुण तं उच्छिद्रु वियरइ वीये
13|एकस्थान प्रत्या
अन्नस्स जो व तं भुजे । गुरुवयणमंतरेण तेसिं गुरुगो भवे दंडो । १२८ ॥ गच्छाओ निज्जूहण आउद्दाणं च | आचामापंचकल्लाणं । डंडो जिणेहिं भणिओ दोण्हवि गिण्हेतदेंताणं ।। १२९ एसागारो गिहिणो न भवइ सुत्तं तहावि
म्लं ख्यान
च स्वरूपे. & अक्खडं । उच्चरइ जहा गुरुणो अहवा आगाढजोगित्ति ॥ १३० ॥ वोसिरई परिहरई चउहाहारं अणेगभत्तं वा।
इय एक्कासणमुत्तं एगहाणं अओ वोच्छं ॥ १३१ ।। एग अचालणेणं ठाणं अंगाण जत्थ तं भणियं । एगट्टाणं तम्मी ॥११॥ आगारा हुंति सत्तेव ॥ १३२ ॥
___एगट्ठाणं पच्चक्खाइ चउबिहंपि आहारमित्यादि । जह एगासणमुत्तं एगट्टाणंपि तह मुणेयव्वं । आउंटणप्पसारणमिह आगारो नवरि नस्थि ॥१३३॥ मुहहस्थवज्जियाणं अंगावयवाण चालणारहियं । होइ इमं नियमेणं तम्हा सत्तेत्थ आगारा ॥१३४॥ आयंबिलसुत्तत्थं अहुणा वोच्छामि तत्थ सुत्तमिमं । आगारगसहियं पन्नत्तं लोगनाहोह ॥ १३५ ।।
आयंत्रिलं पच्चक्खाइ अन्नत्थणाभोगणं सहमागारेण लेवालेवेणं उक्खित्तविवेगेणं गिहत्थसंसट्टेणं 18 पारिद्वारणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह ।
BRAHMARAKES
॥११॥
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