SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीयशोदे तो गुरुभणिओ विसुद्धपरिणामो । वंदणपुव्वं विहिणा भुजइ तं संदिसावेउं ॥१२७। जो पुण तं उच्छिद्रु वियरइ वीये 13|एकस्थान प्रत्या अन्नस्स जो व तं भुजे । गुरुवयणमंतरेण तेसिं गुरुगो भवे दंडो । १२८ ॥ गच्छाओ निज्जूहण आउद्दाणं च | आचामापंचकल्लाणं । डंडो जिणेहिं भणिओ दोण्हवि गिण्हेतदेंताणं ।। १२९ एसागारो गिहिणो न भवइ सुत्तं तहावि म्लं ख्यान च स्वरूपे. & अक्खडं । उच्चरइ जहा गुरुणो अहवा आगाढजोगित्ति ॥ १३० ॥ वोसिरई परिहरई चउहाहारं अणेगभत्तं वा। इय एक्कासणमुत्तं एगहाणं अओ वोच्छं ॥ १३१ ।। एग अचालणेणं ठाणं अंगाण जत्थ तं भणियं । एगट्टाणं तम्मी ॥११॥ आगारा हुंति सत्तेव ॥ १३२ ॥ ___एगट्ठाणं पच्चक्खाइ चउबिहंपि आहारमित्यादि । जह एगासणमुत्तं एगट्टाणंपि तह मुणेयव्वं । आउंटणप्पसारणमिह आगारो नवरि नस्थि ॥१३३॥ मुहहस्थवज्जियाणं अंगावयवाण चालणारहियं । होइ इमं नियमेणं तम्हा सत्तेत्थ आगारा ॥१३४॥ आयंबिलसुत्तत्थं अहुणा वोच्छामि तत्थ सुत्तमिमं । आगारगसहियं पन्नत्तं लोगनाहोह ॥ १३५ ।। आयंत्रिलं पच्चक्खाइ अन्नत्थणाभोगणं सहमागारेण लेवालेवेणं उक्खित्तविवेगेणं गिहत्थसंसट्टेणं 18 पारिद्वारणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह । BRAHMARAKES ॥११॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy