________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्तममाचरेत् // चुलुनौंकास्फुटोदंडीस्वतिकोमुष्टिरारुतिः // एते वैहस्तदोषाःस्युःपरशुश्चैवसप्तमः // 45 // यथावाणीतथापाणीरि / तंतुपरिवर्जयेत्॥ यत्रयवस्थितावाणीपाणिस्तत्रैवतिष्ठति // 46 // यथाधनुष्याविततेशरेक्षिप्तेपुनर्गुणः // स्वस्थानप्रतिपद्येततद्वद्ध / स्तगतःस्वरः॥४७॥ उत्तानंसोन्नतंकिंचित्सुव्यक्तांगुलिरंजितं // स्वरविद्धंकरंकुर्यात्प्रादेशोद्देशगामिनं // 48 // अंगुष्ठस्योत्तरेपर्वत जन्योपरियद्भवेत्॥प्रादेशस्यतुसोद्देशस्तन्मात्रचालयेत्करं॥४९॥ ********************** *** For Private and Personal Use Only