________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobarth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रमसंधिसमाकीर्णोदुस्तरोमंत्रसागरः // ऋक्संहितांत्रिरश्यस्यय जुषांवासमाहितः // 31 // साम्नांवासरहस्यांचसर्वपापैःप्रमुच्य / ते॥ संहितानयतेसूर्यपदंचशशिनःपदं // 32 // क्रमश्चनयतेसूक्ष्म / यत्तत्पदमनामयं // कालिंदीसंहिताज्ञेयापदयुक्तासरस्वती॥३३॥ क्रमेणावर्त्तयेद्नंगांशंभोर्वाणीतुनान्यथा // यथामहान्हदंप्राप्यक्षि तोलोष्ठोविनश्यति // 34 // एवंदुश्चरितंसर्ववेदेत्रिवृतिमज्जति // आम्रपालाशबिल्वानामपामार्गशिरीषयोः॥ वाग्यतः प्रातरुत्था / tor For Private and Personal Use Only