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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir लगद्वन पौदावाग्नि लीलम् ॥ ॐ नमो भगवते पन्वंतरये अम्मन कलराह स्तांयसर्वामय विमाराय त्रिलोक नाथायवि || ष्टण वेस्वाहा ॥ इत्येकचत्वारिंशदसरी मन्त्रः ॥ अक्षरन्यासउच्यते ।। शीर्षालिकभ्टतिवि लोचनघोणगंड दंतोष्ठपाणि शिनधी न्यस्तु क्रमेण ॥ एवमष्ठा सरन्या सरुत्वा लक्षं जपेत् ॥ आज्य सिक्तैः पायसैर्वा पर्यःशिकाभिदूर्वाभिर्वादशांशं पुरश्चरण होमः।। रोगनिवलिप्रधानोरांमन्त्रः ॥ अथ पूजाविधिः। पूर्वम शक्षरवि धानोक्त वैष्णवपी ठेसमा वाह्यसम चयेत्॥ अंगैः प्रथमावति ॥ केशवा दिभिर्द्धा दशनामभिर्द्विती या वृत्तिः इंद्रादिभिस्तृतीया। वज्रादिद्भिश्चतुर्थी । अथ प्रयोग विधेः चतुरंगुल प्रमाणैर म्टताकां जैर्जु हो तियो वन्हौ रोगैर्विमुकदै होविहरदेव दांश तंमुखे नासैौ । अम्मता काउंल सतिल तंडुलि ॥ प्रयोगां तरम् ॥ अरक्कमा नै रयुतं धनाकैः साभिदिना वथ काम राणाम्॥ अरोगमिष्यैप्रज होनिमन्त्री ॥ दीर्घायुषैरो गवि षग्रहादि विमुक्त पेस र्व सम्म ए च । वर भूरू हे मंबद मिश्रम्भरितिज्ञायैरित्यर्थ प्रयो । समितेन चपायसे न दूर्वा त्रिकयुक्तेन चबोधिय त्रमेन ॥ अयुतं जुहुयात्तसर्पिषायौ दुरितीपप्रशमापरोग | शांत्यै ॥ अयमर्थः । शितेतिशेकरा ।। वोधिष त्रं अश्वस्य पच्चम् ॥ सितामिलि ॥ स र्वरुद्धये नकाश्री पेरंकमु प्रयोगांत ॥ प्रादेशमात्रेर्वटभूरु है द्यौः जुहोतुवन्हो वयुर्त सयंमैः।। दीर्घायुष ३ ति लेनय से नचरा हग्गृहीत दूर्व For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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