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प्र.सं. दतात्रेय ऋषिः गायत्री छंद : कार्तवीर्यार्जुनो देवता दत्ता त्रेमप्रियतमायत् माहि भनीना थायशि : रेवानदी जल २०० की जाट प्राय शिखा धी पतयेकवचं सहस्र वाहवे अस्त्रं ध्यानं दोर्ट डेषु सह संमिततरे वजनं ल सत्कों द डैश्वश रुद्रग्रनिशितैरुद्य द्विव स्वभः ब्रह्मांडा नपरि पूरयन् स्वनिनदेंगे इया न्दोलित द्योतत्वं उलमंडितोब जय श्री कार्तवीर्योषिभुः ॐ नमो भगवते कार्त्तवीर्यार्जुनाय हैहयाधिपतयेसहल कवचायसहस्र कर सहशाय सर्वदुष्टांत कामस र्वशिष्टेष्ट सर्व त्रोद् रागंतु कामा न स्म हसं लंप कानू चोरसमूहान व करस हस्तैर्निवार पनि वारयरु ज्वरुज्वपाशासह सैर्बंधबंध अंकुशसह सैरा कुंडाकुंड व चापो द्रतैर्बाणस हलै र्भिद दिख हस्तो द्रुतख सहसै किं द छिं देख हस्तोइ त मुसल सहस्त्रैर्म है यम दय स्व शंखोद्रत ना दस ह वै भीषय भीष यवह तो ग तच सद्रमैः संतयतयत्रास यात्रा सयगर्ज यगर्जय आकर्ष याक र्षयमोहयमो हय मारय मारय उन्मादयो उन्मा दयतापय नापय विदारय विदारय स्तंभय स्तंभय जंभयजं भय मारयमाश्य वशीकुरु वशीकुरु उच्चाटयोच्चाटयवि नाराय विनाशय नात्रेयश्री पादप्रियतम कार्त्तवीर्यार्जुन सर्व बोदरागंतुकामान स्मृद्ध मुलंप को श्वोर समूहान रामः समग्रमुन्नोन्मूलय हुं फट् स्वाहा अ ने नमन् राजेन सर्वकर्माणि साधयेत् त्रिसहस्रं जपः प्रोक्तं मालामन्त्रज २१०
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