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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashagarsuri Gyanmandir पसं इतिपंचम्यारतिः इंद्रादिभिः षष्ठीरवंसंयूज्य पुरस्तात्कंबंपूर्वकं उपरि पानं वोत्तरंज हयात कमलैर्मधुरयुक्तैर। २९८ यांपरश्चरणार्थअथप्रयोगविधिः दूर्वा त्रिकैश्वाथसहलसंख्यदुग्याप्लुतेःसप्तदिनंहलेद्यःरोगेर्विमुक्त:महबंध। वगैःशतंत्रजीवे छरदानरोसोपयोगांनरंपाशांक शो काम भीतिमुद्राकरैर्दधान कमलासनस्दंरक्तांशुकालेपन माल्यमेनंशचीपतिंतल्यगतिंनिशीथेविचिंत्यपाशांक शशक्तिवीर्युकमनमन्त्रितमःसहस्रजननंगातरचित रतिमथर्वशीमानयतेनिजांके आंहींकोंमिति पाशांक शशाकि वीजानिप्रयोगांतरं वराभीतिशक्तिः पविंचापिहसे वहतंसुरक्तंप्रसन्नाननान्नंवलारातिमे विचिंसार्कविवेजप्यात्महसंसम्मध्यदिनादौअयास्पयंत्रकर्णिकायों लिखेत्तारंमनोःपत्रेपुचाष्टमपंचषट्पंचषट्पंचरसभूतषडर्णकान् वयंतरभि माटकयाभूपुरेणच वेष्ट येत् इंद्र ||श्रेष्ठानिमन्त्रस्ययनंसर्वसम्मदिदंआयुरारोग्यसौभाग्यधनधान्यसुतेपदंसर्वरक्षाकरंवश्यमुदिनंत द्यशःप्रदकि |मत्रवहनोक्तेनवांच्छितार्थप्रदं परंप्रयोगांतरंष्टयलायोमधुरयुतांशालीनामंजरीजुहोत्यग्नौशाली पूर्णर हास्यान में | वितमोमंडलत्रया दकिशालीकुलचेनल मंजिरीकतिरिकतिरि मधुरंत्रिमधुरंअयमर्थः त्रिमपुरसिताभिःशा || रामः |लीभिर्नित्यशःसहस्रसंख्यंमंडलायंइतेदिति प्रयोगांतरवैश्वदेवनिरतौग्रहाश्रीमी यो वमुस्ख्यमंधसातस्यभक्त||२४८ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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