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________________ Shri Mate Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsus संविधमणि युताभरण। दिजनाग युगल कुंडल मंडित गुंडयी मुकुट शोभा शोणतराधर पल्लव विद्रुममणिभा १६ सुरां प्रसन्नांच। पूर्णशशिबिंब वदनः मरु णा य त लोचन यी तलि ना कुंचित कुंतल विक सन्मुकुटा घटि ताहिवै रपिळ युत्ता के रानी वनकस मोच लो मयूरात्तपत्र के तनिको। सुरुचिरसिंहासनगोविनम समुदायमंदिरों तरुणीं। ॐ ह्रीं हूं खेचछे क्षः लीं इं ही फट् इनिमंत्रःक्षेलग्रहादि हरणप्रधानो यमंत्री काली का शल इनामि गुह्येषुच जानुघयोःपाद योश्च देह-न्यासकुर्यात्।मनेणयापकसमलेनएकलिंगादि घुस्थानादिषु शक्तिमार्गेण लक्षजपः।त्रिमधुरसिकाभिःबिल्व समिदिर्दशोशंजुहुयात्॥पुरवणहोमः॥अथपूजा।अह हरि विधृतसिंहासनेस मावा स्य सरसिजदेवी पूजयेत्। जयायै विजयाये अजितायै अपराजितायै नित्यायै विलासिन्यै दोग्यअघोरायै मंग लायै एताः पीठ नवशक्त यः ॐ वज्रनख दंष्ट्रायुधाय महासिंहाय हुं फट् न यः। श्रीखेचर्यनमः तंत्ररले।संहूहक्जदे| ह चुकरहिं गुल रगर्ज हूं हूं क्षेपंचाननापनमइति वा इत्या दिअत्रा वाह्यांगैः पूर्वा दिदलेषुषट्स समर्चयेत्। वशिष्टये त्रणीतायै गायत्री इनि पूजयेत् । श्रीं हुंकारायै। श्री खेचनमः श्रींचंडायै रिदिन्यै नमः ॐ क्षे || रामः पिण्येनमः श्री नियनमः श्रीं हुं काय नमः श्री क्षेम का रिकायै नमः इति दलमध्यो दलाने भैरवाकस्था मातृस २५ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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