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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarri Gyanmandir नमा आकर्षणबाणायनमःसःसंमोहनवाणायनमःइतितमर्च येत् तदहिरपत्रेषु सुभगाये भगायै भग, सपिण्यै भगमालिन्यै अनंगायै अनंगकुसमाये अनंगमखलाये अनंग मदनाय इतिसमर्च येत तहतिः रियष्टदले मातृभिर्यजेत् तहिः पोडशदले उर्वये मेनकायै रंभायै वृताच्ये पुंजिकायै सुकेशे मंजुघो। पायै महास में यक्षकन्याये गंधर्व कन्यायै सिद्ध कन्यायै किन्नरकन्यायै उरगकन्यायै विद्याधरकन्या ये किंपुरुषकन्यायै इतिसमति॒ तहहिर पत्रेषु अणिमादिसिध्यष्ट के नसमर्चयेत् तत्र पूर्वादिदि क्ष चतुष्टयं ईशान्यादिविदिक्ष चतुष्टयंच पुनवीमन्या उच्छिरुपादुकायनमः इतिसमर्चयेत्॥इतिसुरेस हितोतल घुमातंगी पूजाविधिःसमाता। अयमातंगेश्वरी मंत्रप्रसंगात् शालेयत सामान्य नस्वयंवंग मित्रविधान मंत्रसा री क्तमषियोग्यतावशाल्लिख्यते ब्रह्माऋषिः देवीगायत्रीछंदः जगन्माताश्रीपार्वती देवतालोक्यवशमोहिनीहत् जगत्रयवश्यमोहिनी शिर उरगपश्य मोहिनी शिरवा राजवश्य मोहि नीक कोपरूषशकरीनेत्रं सर्वत्रीपुरुषमस्वयं ममवशंकराकर स्वाहा अस्त्र अथवाहांहत एम ह्रीं शिरःहूं शिवा हैं कवचं ह्रौं नेत्रं इःअस्त्रं इत्यादिषडंगकुर्यात् ध्यानं वाला/युतमप्रभौकरत - रापान For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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