SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विवाधरास्मितज्योत्स्ना कपोल फल कोज्वला ।। लसत्कुरंग मा बाक्षी नासाकलित मोक्ति की ।। १७देशोल्लसल्लो लवेल्सचामरवेणिका। कस्तू रितिल काचार चंद्ररेखावतेसकादिन्य-चंदनदिग्धोगी मदापूर्णितलोचना। मुक्ताप्रवालावलि भि विभूषित पृथुस्तनी।।मेखलाहार के यूरमंजीर समलंकृत।वीणाणित विस्रमविश्रोता श्रांतमानसा।। सम्य कपाल फल्लि कामालोलालक वल्लरी॥रूसत्कदेबकल्हारप्रसूनैस्तुविराजितालीला श्रुकशिक्ष येती चतुराम्नाय पद्धतीं। आम्नीकसुमुवीभूतो रश्मिभिः परिवारिता॥ध्यावाहदिमहादेवी निश्लेन तरात्मना ।। साधकः परयाभक्त्या मुक्ति मुझे चविंदतिऐनमः उच्छिएचोडालिमातंगिसर्ववशंकरि स्वाहा। इतिविंशत्यगेमिंत्रः ऐश्वर्यगानविद्यावश्य प्रधानो ये मंत्रः कलौकलजितेकाले साधकस्यप्रसीदतिलघु शीप्रेनतेने लघया मेनिगीयते . निशादौलक्षंजपेत् किंशुक पुष्पेजपाकुसुमैरिक्त करवीरमिधा, कपुष्पैत्रिमधुर सिक्तै रयुतंजुहुयात् पुरश्चरणार्थ यस्तुविंशति लक्षाणिपूर्ववत्यजपेन्मनु॥जुहोतियों पूर्व तस्य प्रत्यक्षतांब्रजेत्।। किंशुक मरु वंपु मधूकं इलु प्ये पु अथपूजा प्रतिमा यो पटे पात्रेस्त्रिन यानीचा पिपुस्तके कन्यामू तिथाखड्ने यंत्रेवामलदर्पणाचनलाभो ग्रामलाभः कन्यालाभस्न थापरः।।सुलभाम For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy