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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प.स. मुनीश्वराः। बहुनोक्तेनकिदेविन्यासमेतन्ममपियोनापुत्रायव देहेविनाशिष्यायप्रकाशयेत्।आज्ञासिदिमवाप्नोतिरहसि ६६ न्यासमाचरेत्। अस्मासरतरारसा देवताभाव सिद्धिदा लोकैनास्तिनसंदेहःसंत्यसत्यवान नोज म्नायप्रवेशःश्रीपरजा सादचिंतनम्।महापोढापरिज्ञाननाल्यस्यतपसःफलमामहापोहायन्यासंकत्वायोय त्रतिष्ठतितित्से–हिमहाशैवंशत योजनमायतमातितेकथितं देविध्यानन्यासादिकंपियोसमासेनकिलेशानिकिंभूयःश्रोतुमिछसि।तिमहापोहान्या स:ममाप्तः॥ शयकामकलान्यासकारोर्ध्वगतंविरूपस्यआत्मनोवकंपकल्य्यंहींत्रीमहात्रिपुरसुंदरिपरा रूपवत्रा पनमःइतिमुवव्यापकंकत्वाततःसपराईविंडयंस्तनपग्मध्यात्वाहीश्रीश्रीमहात्रिपुरसंड रिपारात्मक विंडया यनमः। इतितनयोायकलत्वात पोविंदमध्येस परामिव्यंजकरेखायोनिपकल्प्याहीश्रीश्रीमहात्रिपुरसुंदरिसपरा ईभिव्यंज करेखात्मयोन्यैनमः इतिकरतनेनाभेरपाअधोमुखेनविन्यस्याउर्वविहरूपंवकन्तदंतर्गतनासाललाट कर्णत उपांगजातस्सनरूपविडयगतंभुजचतुष्टयंयोनिरूपसपरार्द्धगंतंपादहर्यध्यात्वासर्वसमष्टिरूपमहाकामक लात्मक कामेश्वरकामेश्वरिनामर हस्पात्मकं हेवीरूपमात्मविग्रहंध्यात्रा, ही श्रीरे रईल हीसर्वज्ञायैश्रीमहात्रिपु रामः संदर्येहतारे होश्री क्लींहसकहलही नित्यरप्तायैश्रीमहात्रिपुरसुंदशिरतारेही श्रीमोःसकलहीअनादिबोचा। For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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