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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४ प्राकृत व्याकरण प्रवेशिका १०. क्रिया की भूमि - प्राकृत में अन्तिम हलन्त व्यन्जन नहीं होता है । इसलिए प्राकृत में कोई हलन्त व्यन्जनान्त धात भी नहीं होता है । अर्थात् हस धातु अ विकरण से हस रूप बन जाता है । इसलिए हस प्राकृत में क्रिया की भूमि कहलाती है । इसी के साथ तिङ् विभक्ति का योग होता है । अर्थात् हस् अ-इ = हस इ = हसइ । क्रिया का रूप समझाने के लिए क्रिया की भूमि के ज्ञान की आवश्यकता है । निर्देशक वर्तमान ११. क्रिया विभक्ति ( तिङ् विभक्ति) -- प्राकृत में क्रिया के काल और क्रिया के भाव प्रकट करने के लिए तिङ् विभक्ति होती है । वह विभक्ति संस्कृत से भिन्न है । उपर्युक्त क्रिया का काल एवं क्रिया का भाव संस्कृत से अलग है । नीचे विभक्ति का रूप देता हूँ । प्र. प मध्य पः बहु. व इत्या, ह अतीत भविष्य अनुज्ञा १ व इ, ए - त - हिंइ, हिए उ विधिलिङ ज क्रियातिपत्ति 1 बहु. व न्ति, इरे -त हिन्ति, हिन्ते, हिरे 61 तु जा www.kobatirth.org न्ते 27 १ व सि, से -त हिसि, हिसे सु इजसु, safe ज "1 - त हित्या, हिइ ho ह Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जा For Private and Personal Use Only १व मि -त स्सं, स्सामि, हामि हिमि मु ज उ. प 11 बहु. व मो, मु, म - त - सामो, स्सामु, स्साम, हामो, हामु, हाम मो जा 17 १२. क्रिया का रूप - प्राकृत में उपर्युक्त क्रिया के तीन कालों एवं पांच लकारों का रूप मिलता है ।
SR No.020568
Book TitlePrakrit Vyakaran Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaranjan Banerjee
PublisherJain Bhavan
Publication Year1999
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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