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विसर्ग
अनुनासिक वर्ण
प्राकृत में अनुनासिक वर्ण ज्यादा नहीं होता है । वर्गीय पंचम वर्ण तथा "म्" ही केवल अनुनासिक वर्ण के रूप में प्रचलित हो सकता है । इसका तात्पर्य यही है कि जहां हम लोग अननासिक वर्ण देखेंगे वहां हम लोग वर्गीय नासिक्य वर्ण की उपलब्धि करेंगे । किसी वर्ण के साथ इस तरह नासिक्य वर्ण के स्थान पर अननासिक वर्ण आ गया जैसे यमना-जउँणा, चामण्डा-चाउँण्डा, कामक-काउँओ, अतिमक्तक-अणिउँतय इत्यादि ।
केवल शब्द में ही नहीं कोई विभक्ति में भी नासिक्य वर्ण के स्थान पर अननासिक वर्ण होता है । जैसे- हि, हिं, हिं।। - प्राकृत में नासिक्य वर्ण का प्रयोग ज्यादा नहीं होता है इसलिए ज्यादा शब्द भी नहीं मिलते हैं । लेकिन अपभ्रंश में ज्यादा नासिक्य ध्वनि मिलती हैं । जैसे
अग्गिएँ उण्हउ होइ जगु वाएँ सीअल तेवँ । जो पुणु अग्गिं सीअला तसु उण्हत्तणु केवँ । विसर्ग
प्राकृत में विसर्ग कभी नहीं होता है । अर्थात् विसर्ग का प्राकृत में लोप होता है । विसर्ग की दो तरह की प्रतिक्रिया होती है
१. जब अकारान्त शब्द के बाद विसर्ग होता है तो विसर्ग के स्थान पर ओ होता है । जैसे सर्वतः प्राकृत में सबओ होता है । नरः > णरो, प्रायः > पाओ इत्यादि ।
२. अगर शब्द के बीच में विसर्ग होता है तो विसर्ग के स्थान पर जिस शब्द के पूर्व विसर्ग है उसका द्वित्व हो जाता है अर्थात् वह वर्ण पन: आ जाता है । जैसे दःख । ख के पूर्व विसर्ग है इसलिए विसर्ग के स्थल पर ख का आगम अथवा ख का द्वित्व होता है । अर्थात् दःख शब्द प्राकृत में दक्ख होता है । प्राकृत में दो महाप्राण वर्ण का संयुक्त वर्ण नहीं होता है । इसलिए एक वर्ण का अल्पप्राण होगा क्योंकि दो महाप्राण वर्ण साथ-साथ उच्चारण करने में कठिनाई होती है । इसलिए एक वर्ण अल्पप्राण हो जाता है । साधारणतया प्रथम जो महाप्राण वर्ण होता है उसका ही अल्पप्राण हो जाता है । अतएव दुःख प्राकृत में दुक्ख होता है । यह नियम प्राकृत में सभी संयुक्त वर्ण पर लागू होता है ।
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