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________________ - जिनेश्वरने वीरहे जिनेश्वरनी मु सेवना हे प्रनु तुमो संसार दुख तीनी। थी मुकाणा मुजने मुकावानु सु ध नीमीत थया ते सफल ॥३०॥ जिण विरहमि जिणबिंब। सेवणा मंतण सहलं ॥३॥ श्रवग्रह द्वार १६ चारे दिसीइं साढात्रण हाथ? तेर हाथ नरे गुरुनो अवग्रह वांदणामां। नर नरे नारी॥ चदिसि गुरुग्गहो ह। अहुरतेरस कर२स परपके॥ गुरुनी आज्ञा माग्या वीना पो न कल्पे ते गुरुनी समीप जग्याई ते सदैव वा नीत प्रते। पेसवाने ॥३१॥ ___ अपणुन्नायस्स सया। नकप्पए तब पविसेन॥३२॥ बताण अक्षरनु द्वार १ ७ पांचए चार ए मे पद अनुक्रमे प्रण३ बार१२ बेश् त्रण। गणत्रीस जाणवां ॥ पण रतिगश्बारसदुग चनरोबाण पय गुणती नगणत्रीसशए बीजांआ[तिग॥ सर्व मली पद अगवन [सं॥ वसकोने वीषे। थयां ॥३॥ गुणतीस सेस अवस्सया। सव्व पय अम्वन्ना॥३॥ वांदनारनुंब वचननु द्वार१७ नीसीहीयादीमां१२ समुचय जत्ता इच्छामियादीमांपअणुजाण मांश् जवणिजंचने०३ ॥ हादीमां। श्वायरअणुणवणारा अव्वाबाहं३च जत्तजवणायाम अपराधनुं खमाव, पण खामे वांदणां देनारनां ए गंम जांण|| मी खमासमणो आदीमां। वां ॥३३॥ अवराह खामणा वियदा वंदण दायस्स बणा ॥३३॥|| गुरु वचन बनु द्वार १ए बंदे तहती ए त्रीजुंस्तुपीण व्रते वे ए ग' अणुजाणामी। चोथुध एवं गुरु वचन५॥ -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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