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सातमे अधीकारे श्रुतज्ञान प्रते सत्तमए सुनाएं।
| हवे नवमे अधीकारे तिर्था द्विप श्री वीरजिन स्तुती । तित्थाहिव वीर थुइ |
कयंत थुइ ॥
सम्यग् द्रष्टी देवनु समरण बेले वा बारमे अधीकारे ॥४५॥
धावया इगदिसि । सुदिठि सुर समरणा चरिमे ॥४५॥
एबार अधीकारमां नव अधीकार वीस्तरा नांमे श्री हरिनद्रसुरि क्र इहां चैत्यवंदननी व्रती ललीत । त श्रादेना अनुसारथी ॥
नव हिगारा इह ललि
| अष्टापदजीनी स्तुती अगीया
रमे ।
त्रण अधीकार श्रुतनी परंपरा थी ।
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तिन्नि सुत्र परंपरया श्रावस्यकनी चूर्णिने वीषे ।
वस्य चुन्नी | ते कारण माटे नज्जिता दीक पिए । ते नर्जिताइव । बीजो अधीकार श्रुत स्तवादि ।
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ठमे अधीकारे सर्व सिद्ध स्तुती ४४ हम ए सव्व सिध थुई ॥ ४४ ॥ नवमे दस श्री गीरनार वा रेव ताचल स्तुती ॥ नवमे दस मे
चयाई ।
बीन सुत्र ते माटे नमुने ते
। विचरा वित्ति माई पुसारा ते त्रण कीया बीजी दसमो इगीया रमो ॥४६॥
बीन दसमो इगार समो ॥ ४६ ॥ सधीकार पुर्वाचार्य
जेक नी जेम इबा ॥
जंनणि सेसया जहिचाए ॥
अधीकार श्रुतमय नीचे जांणवा
॥४७॥
हिगारा
मया चैव ॥ ४७॥
करी वरणव्यो तेज याव सक चुर्णिमां नीचे ॥
Eat aन्न तहिं चैव ॥ द्रव्य अरिहंत वांदवाने अवसरे प्रग