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________________ 0 - - - द्वार ७ श्रेण्यो कहे वीद्याधरनी श्रेण्यो एकेकनी अनीयोगीक देवनी ते पण। वैताढ्य वैताढ्य प्रते ॥ विजाहर अनिन्गीय। सेढीन दुन्नि दुन्नि वेअढे ॥ ए चारगुणा चोत्रीसने करतां। बत्रीस३६ सो१०० सेढीन ते १३६ थई ॥१॥ द्वार 3 श्य चनगण चनतीसा। बत्तीस सयंतु सेढीणोण द्वार द्वार विजयो कहेले चक्र बीजय३२ श्रादीपदे जरत ऐरव्रत इहां वर्ती जे क्षेत्रने वीये झीती होय ए चोत्रीस ॥ द्वार ७ राज करे । चक्की जेयव्वाई। विजयाइंश्च हुंति चन्तीसा॥ द्वारज द्वार ए हवे द्रहसंख्या मोहो कुरुक्षेत्रने वीषे दस द्रह ए वे मली टा द्रह बने पद्मादि। सोल द्रह ने ॥२०॥ द्वार ए मह दह बप्पनमाई। कुरूसु दसगंति सोलसग॥३०॥ द्वार१० हवे नदीयो संख्या रक्तवतीर ए चार नदीयो द्वार |गंगा सिंधुर रक्ता। प्रत्येक प्रत्यके ॥ गंगा सिंधु रत्ता। रत्तवई चन नश्न पत्तेयं । चनद हजारने परीवारे ले ते समय मलेले वा जायडे समुद्र ५६०००। मांही ॥१॥ चन्दसहिं सहस्सेहिं। समगं वच्चंति जलहिमि॥२१॥ एमज अभ्यंतर नदीयो चार वळी प्रत्येके अगवीस हजार स हीमवंतादीकनी। हित एटले ११२०००॥ एवं अनंतरिया। चरो पुण अवविस सहस्सेहिं ॥ चली पण हविर्ष क्षेत्र र हजारे जाय चारे नदीयो २२४००० म्यक क्षेत्रनी बप्पन्न॥ ॥॥ पुणराव चप्पन्नेहिं । सहस्सेहिं जंति चन सलिला॥॥ - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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