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________________ ४५ ते मंत्रण मन वचन कायम सीघ्रकाले मुजने आपो मोक्षपद | एथी वीरम्ये सुखे पांमे हेते। ॥४६॥ ॥ दंम तिय विरय सुलहं। लहुं मम दिंतु मुरूपयं॥४६॥ ज्ञान आचार लक्ष्मीयुक्त जिनहं राज्ये चारीत्र लक्ष्मीवान् धवलचं स आचार्यने। द्रना शीष्य ॥ सिरि जिणहंस मुणिसर। रऊ सिरि धवलचंद सीसेण॥ गजसारमुनी तेणे पदबंधे र ए ते श्री वीरप्रनुने विनती आत्म ची वा लखी। हेते ॥४॥ | गजसारेण लिहिया। एसा विन्नत्ति अप्पहिआ॥४॥ एप्रकारे श्री वीच्यारउत्रीसीका वा चौवीस झमक समाप्तः ॥३॥ इतिश्री चनविस झमक समाप्तौ ॥३॥ नमस्कार करीने जिनेश्वर स जगत् पुज्य जगत् गुरु श्री माहा वज्ञ प्रत्ये। वीरस्वामी प्रत्ये॥ नमिय जिणं सव्वन्नु। जयपूऊ जयगुरू माहावीरं॥ श्रा जंबुद्धीपमा जे शास्वता कहु सुत्रथकी पोताने परने हेतुई पदार्थ बेते। जंबूद्दीव पयजे। वुद्धं सुत्ता स पर हे ॥१॥ खांमार जोजन र क्षेत्र वा वर्ष। पर्वत?कूटरवा शीखर तीर्थ श्रेण्यो? | खंमारजोयणश्वासा३ । पव्वयस्कूमायतिबदसेढीन वीजयोर द्रही नदीयो? ए दस समुदाइंथाय संघयणी नांमे प्र पदे वा द्वारे। कण ॥॥ | विजयपहासलिलानर। पिमेसिं हो संघयणी॥२॥ -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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