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रेजीव माविसायं । जाहितुमं पिचिकण पररिधी। धम्मरहियाण कुत्तो। संपऊ विवह संपत्ती ॥५॥ रेजीव किं नपिछसि । किऊंतं जुव्वणं धणं जीअं॥ तहविहु सिग्धं नकुणसि।अप्पहियंपवर जिणधम्म॥६॥ रेजीव माण वङित्र। साहस परिहीण दीण गयलऊ ॥ अबसि किं वीसबो । नहु धम्मे श्रायरं कुणसि ॥७॥ रेजीव मणुयजम्मं । अकय जुव्वणंच वोलीणं ॥ नयचिन्नं नग्ग तवं । नय लही माणित्रा पवरा ॥॥ रेजीव किं न कालो। तुझग परमुहं नीयंतस्स ॥ जं डिअं नपत्तं । तं प्रसिधारा वयंचरसु ॥५॥ श्यमामुह सुमणेणं । तुम सिरी जा परस्स श्राश्ता । ता आयरेण गिन्हसु । संगोय विहि पयत्तेण ॥१॥ जीवं मरणेण समं । नपऊ जुव्वण सह जराए॥ रिघी विणास सहिा । हरिस विसान नय कायव्वो ११
॥ति जीवानूसास्ति कुलक समाप्तः ॥
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ली सा० मगनलाल मनसुखरामनी वीनंती ए जे जे आ चो|| पमीमां सूत्र अर्थ वर्ण मात्रादिक मारी जे कांइ जुल थइ होय ते सुस्वजनो मारा नपर कीरपा करी शुद्ध करी प्रव्रतावजोजी ने मा रगथी जे फेर थयु होय ते मुजने मिथ्या दुक्रत ॥संवत १४४ ना श्रावण वदी ११ ने वार रवेन ॥
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