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२७३ न अकार्यने आदरीइं वा अं आपणो यात्मा पामीजे नही नंद गीकरीइं।
नीक वचनमां ॥ ना कऊ मायरिङ। अप्पा पामिजए न वयणिडो॥ न साहासीक प्रते तजीइं वा नना राखीइं ते गुणे जगतमां हाथ बोमाई कष्ट आवे तोपण। ॥१२॥
नय साहसं चश्ऊ। ननिऊ तेण जग हबो॥१॥ कष्ट आवे पीण न मुझाईइं। न मुकीजे आदरया मारगनु मा
___ न नाम मरणांते पण॥ . वसणे वि न मुनिऊ। मुच्चश्माणो न नाम मरणे वि॥ लक्ष्मीनो क्षय वा नाश थई वृत तरवारनी धार समान होय पीण दांन दीजे योग्य। निश्चे धीर पुरषने ॥१३॥
विहव कएवि दिऊ। वय मसिधारं षु धीराणं॥१३॥ घणो स्नेह न धरीजीइं वा रीसावु नही सनेही नपर पीण नी|| वहीइं कोइथी।
रंतर ॥ अश् नेहो न वहिऊ। रूसिऊ नय पिएवि पयदिह। वधारीजे नहीं कलह वा व जलांजली आपीई दुःखने इंम दुः ढवाम कोइथी। खमार्ग तजीइं॥१४॥
वहारिऊर न कली। जलंजली दिऊर दुहाणं ॥१४॥ न माठा साथे वसीइं मा बालकथी पिण ग्रहण करीई आपणा|| तो संघ न कीजे। हीतनु वचन॥
न कुसंगेण वसिऊ। बालस्स वि घिप्पए हिअं वयणं॥ अन्याय मार्गथी नीवृतीजे न थाय मातु बोल कोइने आप वा पाला भोसरीजे। ए॒ ए रिते ॥१५॥
अनयान निवहिऊ। नहोइ वयणिऊया एवं ॥१॥