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१७१ नो कारक।
पूच्याथी ते प्रनूए ते प्रस्तावे॥ __अश्दुकर तव कारी। जगगुरुणा कह पुछिएप तया॥ कह्यो ते मोहोटा यात्मानो समरु चितमां श्री नेमिनाथजीनो धरणी।
शीष्य ढंढणकुमार मुनि प्रते ॥११॥ वाहरिन स महप्पा। समरिऊन ढंढण कुमारो॥१२॥ प्रतिदिवसे सातजण प्रते वध करीने वा मारीने लीधी श्री वी तेमां ब पुरुष एक नारी। रजिन पासे दीक्षा ॥
पदिवसं सत्तजणे। वहिकणं गहिय वीरजिण दिखा॥ दुक्कर अनिग्रहमां निरतो वा अर्जुनमाली मुनि सिद्धीपद पांम्यो समस्त रक्त एहवो। ॥१॥
दुग्गा निग्गह निरन। अङ्गुणन मालिन सिघो॥१२॥ नंदीसरनांमे आठमो द्वीप तथा मेरूपर्वतना सिखरने विषे एक तथा रुचकनांमे तेरमो द्वी फाले करी ॥ प तेने विषे निश्चे।
नंदीसर रुअगेसु वि।सुरगिरि सिहरेसु एग फालाए। जंघाचारण विद्याचारण जाय तपना प्रजावे करीने श्री जिनपमि मुनियो लब्धीवंत। मा वंदनार्थे ए अधीकार नगवतीसूत्रे
२०मा सतकना एमा नदेसामा ।१३। जंघाचारण मुणियो। गचंति तव प्पनावेण ॥ १३ ॥ मगधदेशनोराजा जे श्रेणीक वरणव्यु वा वरखाप्युं स्वमुखे श्री तेना आगल जेहन। माहावीरस्वामीइं तपनु रूप॥
सेणिय पुर जेसिं। पसंसिगं सामिणा तवोरूवं॥ ते श्री धनाजी सालिनद्रना ब ते बेहूं पिण पांचमे अनुत्तरे पो | नेवी तथा धनाकाकंदीमुनिनुं। होता ॥१॥
ते धन्ना धन्नमणि। दुन्नवि पंचुत्तरे पत्ता ॥१४॥