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________________ २६६ हवाना जे। एहवो कंदर्प तेहना बलनो अहंकार || हरि हर बंन पुरंदर। मय नंजण पंचबाण बल दप्पो॥ अप्रीयासे जेणे मरद्यो वा ते श्री थूलीनद्रजी आपो कल्याण दली नांख्यो। प्रते ॥१॥ लीलाइ जेण दलिन । स थूलनदो दिस न॥२॥ मनोहर योवनना समो प्रार्थना करते थके पिण स्त्रीरूप हे वर्तते। पाणीपुरे करी॥ मणहरतारुननरे। पबिऊंतोवि तरुणि नियरेणं॥ मेरुपर्वत परे अचल ने मन ते श्री वयरस्वामी मोटा रिषी जय जेहनु हेवा। वंता वर्तो ॥१३॥ सुरगिरि निच्चल चित्तो।सो वयर महारिसी जय॥१३॥ स्तवना करवाने तेहनी न श्रावक जे सुदर्शनना सीलगुणना सकीये। समूह प्रते॥ __ थुणियं तस्स नसका। सढस्स सुदंसणस्स गुणनिवह॥ जे विषम संकटमां निश्चे। पमे थके पिए अखंम सीलरूप धन रारब्युं ॥१॥ जो विसम संकमेसु वि। पमिळवि अखंम सील धणो १४ सुंदरीजी रूपनदेवनी पुत्री सु मणोरमा सुदर्शनसेठनी स्त्री अंज नंदा वैरस्वामीनी माता चेल ना हनुमाननी माता मृगावती चं णा श्रेणीकनी स्त्री। दनबालानी चेली ॥ ___ सुंदरि सुनंद चिन्नणा। मणोरमा अंजणा मिगावश्॥ ए जिनशासनमां प्रसिद्ध वा मोटी सतीन हे नव्यो तुमने विख्यात हेवी नली। सुख प्रते द्यो॥१॥ | जिणसासण सु पसिघा। महासईन सुहं दितु ॥२५॥ -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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