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१६२ लक्ष्मीवंत श्रीश्रेयांसकुमार मोक्षपदनो स्वामी किम न थाय रूपनदेवनो पोत्रो। अर्थात् थायज ॥
सिरि सेयंस कुमारो। निस्सेयस सामि कह नहोई॥ या चोवीसीमां प्रथम फासु प्रगट कीधी जेणे आ नरतक्षेत्रने क दांननो प्रवाह। विषे ॥१॥
फासूत्र दाण पवाहो। पयासि जेणनरहमि ॥१७॥ किम ते न वखांणीए अर्थात् चंदनबाला कुमरी श्री माहावीरने वरखांणीएज।
दांन देवे करीने॥ कह सा नपसंसिऊ। चंदणबाला जिणंद दाणेणं॥ ते माहावीर उमासीक तप पारयो वा संतोषो जेणे श्री माहा तप्या तेमने देइने। वीर जिनेश्वरने ॥१॥
बम्मासिय तव तविनिव्वविजेहिं वीरजिणो॥१॥ दिक्षा लीधा पड़े प्रथम कस्यां हतां करे तिमज करशे त्रणे यादे पारणां। काले ॥ ___ पढमाइं पारणाई। अकरिंसु करंति तह करिस्संति॥ श्रीअरिहंत ज्ञानादिगुणे जे गृहस्थने घेर तेहने निश्चे सिद्धि त्र सहित एहवा पुजनीको। गजवमा तथा आगे ॥१॥ __ अरिहंता जगवंतो। जस्सघरे तेसिं धुव सिधि॥२॥ श्रीजिनप्रासादक्षेत्र श्रीजिनबिंब चतुर्विधसंघसाधुधसाधवीएश्राव वा प्रतिमाक्षेत्रजिनपुस्तकक्षेत्र। कश्रावीकारूपजे सातक्षेत्रमा
जिणनवण बिंब पुवय। संघ सरूवेसु सत्त खित्तेसु॥ नवं न्यायविधि योगे वाव्यु मोक्षरूप फलनणी आश्चर्यकारी अनं जे द्रव्य ते थाय। तगुणु ॥२०॥ वावअंधणंपि जायई। सिवफलय महो अणंतगुणं ।।।
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