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________________ । २६० सिद्धि पांम्यो रत्नकंबल देण बावनाचंदन देणहार सेतीयो पिण हार। तेज नवमां ॥७॥ __ सिघोष रयणकंबल। चंदणविपिनवि तंमिनवे ॥ देइने खीरनुं दांन। तपे करी सोषव्यु सरीर ले जेणे एहवा साधुने धन्यकारी॥ दाकण खीर दाणं । तवेण सुसिअंग साहुणो धणिअं॥ लोकमां नपार्यो चमत्कार जे समस्तपणे थयो गोनद्रसेष्टीपुत्र णे एहवो। सालीनद्र पिण नोगनु नाजन ए| __ जण जणिय चमकारो। संजान सालिनदोवि ॥५॥ पूर्वजन्मांतरना सुपात्र नल्लास पांम्युं अपूर्व शुनध्यांन तेना दांन थकी। प्रनावे॥ जम्मंतर दाणा। नन्नसिया पुव्व कुसल साणा कयवन्नो सेठ कतपुन्यनो धणी। जोगनुंजाजन वा स्थानक थयो १० कयनन्नो कय पुनो। नोगाणं नायणं जान॥२॥ घृतपूष्प साधू तथा वस्त्र मोटा मुनि दोषना लेलथी समस्त पूष्प साधू ए बे। रहित ॥ घयपूस वबपूसा। महरिसिणो दोस लेस परिहीणा॥ आपणी तपलब्धीए करी घृतनुं तथा वस्त्रनुं पुरवापणुं करीने समस्त साधूमंमलीने वा वा साधूनि नक्ती करीने नत्तमगति समूहने। पांम्या॥११॥ लघीई सयल गहो। वग्गहगा सुग्गइं पत्ता ॥११॥ जीवंतस्वामी श्री महावीरनी वीरस्वामीना शासनमां वीचरीने प्रतिमाने। नक्कीइं करी॥ जीवंतसामि पमिमाइं। सासणं वियरिकण नत्तीए॥ -- -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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