________________
१५४ सोना होय नत्कृष्टा तपवंतने क्ष थिर योग तेज नपसमवंतनी|| मा थकी।
शोना ॥ | सोहानवे नग्ग तवस्स खंती।समाहिजोगो पसमस्स सो ज्ञानगुण जतु ध्यान ए बे ते चा सिष्यनी शोना जे विहा॥ रित्रवंतनी शोना।
नय गुणमा प्रवरती॥॥ नाणं सुकाणं चरणस्स सोहा। सीसस्स सोहा विणए पवि आनरण विना शोने सिलवत परिग्रह रहित ते शोनेति॥णा नो धरणहार।
दीक्षाधारी जे साधू ॥ अनूसणो सोहश्बंनयारी।अकिंचिणो सोहइ दिकधारी बुद्धिइं करी सहित होय ते शो लाजे करी सहित पुरुष्य ते शो ना पांमे राजानो परनान। ना पांमे एक स्त्रीथी ॥१॥
बुधिजुन सोहरायमंती। लज़ाजुन सोहर एगपत्ति १० आत्मा पोतानो वैरी समान होय जेना जोग नाम नही ते।
अप्पा अरीहोर अणवकीयस्स। यात्मा जस पांमे सीलवंत जे मनुष्य ते॥
अप्पा जसो सील मन नरस्स॥ आत्माज दुरात्मा ज्ञानादीगुणे नथी अवस्थित जेनो ते । __ अप्पा दुरप्पा अणवध्यिस्स। आत्माज आत्माने वस राखे तो तेज सरण करवा योग ॥११॥
अप्पाजी अप्पा सरणं गश्य ॥१२॥ नथी धर्मकारज समान बीजु नथी प्राणनी हिंसा समान मोटु कार्य ॥
अकार्य ॥ नधम्मकऊं परमबी कऊं। न पाणिहिंसा परमं अकऊं।