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दांत देवानो नल्लास वांच्छा रही तहीता हीतनु समीपपणु४९॥ दाणु ल्हासो विवेग संवासो ॥ ए पांम प्रत पुन्ये करी जीव ने ॥ ८ ॥
तीचारे रहीत सुद्ध सील वा
श्राचारनु पालवु४ ७ ।
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निम्मल सीला प्रासो चारगतीना दुखथी जय पां वा ते दुखने जय पमामे५० । चनगई दुह संत्तासो |
लनंति पनूय पुन्नेहिं ॥ ८ ॥ अनुमोदवु५२ गुरु पासे माठा क त्यनु प्राच्छीत लेबुं५३ बार नेदे
माता कर्मनु नींदवु नीजसाखे ग्रहा वा प्रसीद्ध करवुं गुरुसाखे | माठारुत्यनु५१ ने जलाकृत्यतु । तपनु करवु५४ ॥ दुक्कम गरिहा सुकमा । मोयणं पायचित्त तव चरणं ॥ ए पांमवुं वीशेष पुन्ययोगे
| स्वपरने ननु इच्छक ध्याननु ध्यावु५५ वा परमेष्टी नमस्कारादी ध्यान करतुं । जीवने ॥ || सुह झाप नमक्कारो |
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ए प्रथमे कह्या बोल तेरूप गु रामणी नरवाने जंमाररूप । श्य गुणमणि जंमारो ते जीव समस्त प्रकारे तोमी ने मोहना पास बंधने । विचन्न मोहपासा । ए प्रकारे पुन्यनो समुदाय बोल समाप्तः ॥ इति पुन्यकुलक समाप्तं ॥
लनंति पनूय पुन्नेहिं ॥ था सांमग्रीने पांमीने जेणे ते बोल
आदर करया ॥
सामग्गी पावीनण जेहं कन ॥ पांमे तेज जीव शास्वतां सुख प्रते कर्म रहत ने सिद्धि सुख ॥१०॥ लहंति ते सासयं सुखं ॥१॥
अथ पुन्यपापकुलक लिख्यते ॥
बीस हजार दीवस । वरस एकसोना थाई श्रायु परीमाण पुरुषना