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________________ १४७ दांत देवानो नल्लास वांच्छा रही तहीता हीतनु समीपपणु४९॥ दाणु ल्हासो विवेग संवासो ॥ ए पांम प्रत पुन्ये करी जीव ने ॥ ८ ॥ तीचारे रहीत सुद्ध सील वा श्राचारनु पालवु४ ७ । | निम्मल सीला प्रासो चारगतीना दुखथी जय पां वा ते दुखने जय पमामे५० । चनगई दुह संत्तासो | लनंति पनूय पुन्नेहिं ॥ ८ ॥ अनुमोदवु५२ गुरु पासे माठा क त्यनु प्राच्छीत लेबुं५३ बार नेदे माता कर्मनु नींदवु नीजसाखे ग्रहा वा प्रसीद्ध करवुं गुरुसाखे | माठारुत्यनु५१ ने जलाकृत्यतु । तपनु करवु५४ ॥ दुक्कम गरिहा सुकमा । मोयणं पायचित्त तव चरणं ॥ ए पांमवुं वीशेष पुन्ययोगे | स्वपरने ननु इच्छक ध्याननु ध्यावु५५ वा परमेष्टी नमस्कारादी ध्यान करतुं । जीवने ॥ || सुह झाप नमक्कारो | | ए प्रथमे कह्या बोल तेरूप गु रामणी नरवाने जंमाररूप । श्य गुणमणि जंमारो ते जीव समस्त प्रकारे तोमी ने मोहना पास बंधने । विचन्न मोहपासा । ए प्रकारे पुन्यनो समुदाय बोल समाप्तः ॥ इति पुन्यकुलक समाप्तं ॥ लनंति पनूय पुन्नेहिं ॥ था सांमग्रीने पांमीने जेणे ते बोल आदर करया ॥ सामग्गी पावीनण जेहं कन ॥ पांमे तेज जीव शास्वतां सुख प्रते कर्म रहत ने सिद्धि सुख ॥१०॥ लहंति ते सासयं सुखं ॥१॥ अथ पुन्यपापकुलक लिख्यते ॥ बीस हजार दीवस । वरस एकसोना थाई श्रायु परीमाण पुरुषना
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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