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________________ १४० जह चिंतामणि रयणं । सुलहं नहुहोई तुच विहवाएंणं ॥ जीवने तीम धर्म चिंतामणी रत्न पीए जांएवं ॥५॥ जीण तह धम्न रयणंपिण्य गुण विश्व वी | जेम द्रष्टीनो संजोग । न होय जन्मथी ग्रंथ होय जे जीव तेहने ॥ जह दिधी संजोगो । तेम श्री जिनमतनो संजोग वा गुणरूप वैजवे करी वर्जीत वा रहीतने । समागम । तह जिमय संजोगो प्रतक्ष अनंता ज्ञानादिक गुण जुश्रो मिथ्यात्वमां अनंता दोष अज्ञान हठ यादे | मि त दोसा । तोहे पण तेज नीचे जीव । नहोइ जच्चंधयाण जीवाणं ॥ न होय मिथ्यात्वे करी अंध जे जीव तेहने ॥ ९६ ॥ । नहोइ मिध जीवाणं॥ ए६ ॥ श्री जिनधर्मने वीपे नथी दोषतो लेशमात्र पण ॥ जिणंदधम्मे न दोस लेसोवि ॥ धर्मे न रमे कोइ काले पण तेहमां जीव ॥ ५७ ॥ बे| पच्चरक मांतगुणा । तोहे पीए नीचे ज्ञाने करी यांधला । तहविहु अन्नाचा । नरमंति कयावि तंमि जी ॥७॥ प्रतक्षपणे देखाय वे नथी गुणनो ले श पण ॥ ते माटे धीक्कार धक्कार हो ते नर वा पुरुष प्रते । धिवी तानराणं । पयमा दीसंति नवि गुणलेसो॥ कटनी वातके मोहे करी थ था थका सेवे बे ॥८॥ तहवि तं चैव जीया । हा मोहंदा निसेवंति ॥८॥ तेम धीग धीग तेहना वीज्ञानने त था गुणने तथा माहापणने ॥ विन्नाणे तह गुणेसु कुसलते ॥
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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