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१३७ मनुष्यना नवमां सार रही वीलाप करया शुं नथी ते सांजरतु तपणे।
हे जीव तुजने ॥७॥ मणअनवे निस्सारो। विलविन किं न तं सरसि॥७॥ पवननीपरे गगन वा ा अणदेखायो वा अणनखायो फरे काशने मारगे। जवरूप वनमां जीव ॥
पवणुव्व गयण मग्गे। अलकिनमश्नव वणे जीवो। मम गमे तजीने वा बमीने। धनना तथा स्वजनना समुह प्रते ७
गणनणंमि समुझिकण। धण सयण संघाए॥॥ बंधातो थको सदा नीरं जन्म जरा मरणरूप तीखा वा अणी तर।
याला नाला थकी॥ विधिऊंतोत्र सयं । जम्म जरा मरण तिक कुंतेहिं॥ दुःख जोगवतो अती आकरां। संसारे नमतां थकां जीव ॥७॥
दुह मणुहवंति घोरं। संसारे संसरंत जीआ ॥ तोहे पीण क्षणमात्र पीण को अज्ञानरूप सर्प मशा जीव तेथी। इदिवसे नीचे।
तह वि खणंपि कयाविहु। अन्नाण नुअंग किया जीवा संसाररूप बंधीखाना थकी। नथीननगता मूर्ख मनना जीव॥७॥
संसार चारगा। नया विऊंति मूढमणा ॥जए॥ क्रीमा करेले केटली वेला। सरीर वा देहरूप वाव्य जीहां डे
तेहमांथी समय समय प्रते।। कीलसि किमंत वेलं। सरीर वावी जन पश्समयं॥ कालरूप अरहटनी घमी सोसे वा खुटामे बे जीवीतव्यरूप योइं करी।
पाणीने ए॥ कालरहह घमीहिं। सोसिऊ३ जीविअंनोहं ॥॥
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