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________________ - % कमलनीना पत्रना अग्रे हाल जेम पाणीनो बींदु न ठरे तीम ते। चंचल बे सर्व ॥१॥ नलिणी दलग्ग घोलिर।जल लव परि चंचलं सबंर४ ते कीहां कायानु बल ते कीहां। योवनपणु तथा सरीरनी मनो हरता कीहां॥ तं कब बलं तं कब। जुव्वणं अंगचंगिमा कब॥ ए सर्व अनीत्य जो वा प्रीन। देखतां नष्ट थाय स्युं ते वस्तुइं करी।१५|| सव्व मणिचं पिठह। दिलं नठं कयं तेण ॥ २५ ॥ घणा वा बहु कर्मरूप पास संसाररूप नगर तेहमां चारगतीरू ले बंधायो। प मारगमां नाना प्रकारनी॥ घण कम्म पास बहो। नव नयर चनप्पहेसु विविहान॥ पामे वीटंबना ते माटे हे जीव कोण ने इहां ताहरे सरण पुगइंबीइंजे। ते ॥१६॥ - पाव विकंबणा। जीवो को श्च सरणंसे ॥१६॥ हे जीव घोर वा नयंकर मागे मल तथा करदम असुची दुगं माताना नदरमां। बनीक एहवामां ॥ घोरंमि गप्नवासे। कलमल जंबाल असुश् बीनछे॥ वस्यो पूर्वे अनंतीवार। जीव आपकत कर्मना प्रनावथी॥१७॥ वसी अणंत खुत्तो। जीवो कम्माणु नावेण ॥२॥ चोरासी नीचे लोकने वीषये। जीवोने नपजवानां स्थानक प्रमुख लाख ॥ चनलसीई किर लोए। जोगीणं पमुह सयसहस्साशं॥ ते चोरासीलाख योनीमांनी अनंतीवार नपन्यो हवे कीम सम अकेकी योनीमा जीव। झतो नथी ॥१॥ - - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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