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२१॥ हे आत्मा त्रए जणा पुते लाग्या एकतो रोग बीजो जरा वा वय
हाणी त्रीजो मृत्यु ॥५॥ _ तिन्नि जणा अणुलग्गा। रोगोत्र जराय मञ्चूअ॥५॥ दिवस रात्री ए बे रूपतो घ घायुषारूप पाणी जीवनु ब्रहण क मीनी माला ।
रे॥ दिवस निसा घमिमालं। पाक सलिलं जीाण धितूणं चंद्र सूर्य एबे धोरी वृषन । काल रूपीयो हांकनार ले ते अर|
हट प्रते नमामे ॥ चंदा श्च्च बन्ना। काल रहदं नमामंति ॥६॥ तेहवी नथी जगतमां कला ते योषध तेह, नथी कांई पण वी हवु नथी जगतमां। ज्ञान ॥ । सा नबि कला तं नबि। नेसहं तं नबि किंपि विन्ना। जेहने करी राखीजीइं या खाती थकी कालरूपीथा वीष काया वा देह।
धरे ॥७॥ जेण धरिऊ काया। खऊंती काल सप्पणं॥७॥ दीर्घ वा लांबी सेषनागरूप महीधर वा परवतरूप केसरा दस तो कमलनी नाल्य। दिस्यारूप मोहोटां पत्र। । दीहर फर्णिद नाले।महिअर केसर दिसामह दलिले ॥ व ते पश्चातापे पीइंजे काल लोकना गणरूप कमलनीसुगंधी वा रूपीयो नमारो। मकरंद प्रथवीरूप पद्म वा कमलनीए ___ , पिअ काल नमरो। जण मयरंदं पुहवी पनमा सरीरनी बायाने मसले करी समस्त जीवोनां बीद्र जोव वा काल व्रतनां लक्षण। खोलेडे ॥
गया मिसेण कालो। सयल जिवाणं बलं गवसंतो॥
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