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________________ वीसयरूप पीपासा वा तरसा इं तपाव्या ते । विसय पिवासा तत्ता । दुःखीया दीन खीन थइने । दुहिया दीपा खीणा । गुणकारी बे तीहिं वा घणु गुणकारि आपणी इंद्रिय प्रते । धणि नियाई इंदिया | मनजोग वचनजोग कायजोग प्रते । ११६ रक्त वा लीन थया स्त्रीने वीषये कर्दमवाला सरोवरमां ॥ रत्ता नारीसु पंकिलसरंमि ॥ रूले वा रझले एहवा जीव संसार रूप वनमां ॥४॥ रूलंति जीवा नववरांमि ॥४॥ धृति वा संतोसरूप रजु वा दोर मे बांध ते हे जीव । । धिइ र नित्र्यंतियाई तुह जी जेम बलवंत नीजंत्रा वा बां [वा ॥ धेला घोमानी परे ॥ ए५॥ वह्नि नित्ता तुरंगुव्व ॥ ५ ॥ नले प्रकारे बांध्या थका पण गुण करता थशे ॥ सुनित्तावि गुणकरा हुंति ॥ मदनमत्त हाथीनीपरे सिलवन प्रते ॥६॥ मण वयण काय जोगा । ते जो नही बांध्या होय तो फ री जांगे वा खं । अनिता पुरा नर्जति । मत्तकरिपुव्व सीलव॥६॥ जेम जेम दोष वीरमीस वा जेम जेम वीसयथी थइस वैराग्य तजीस ने । वत ॥ जह जह दोसा विरमइ । जह जह विसएहिं होइ वेरग्गं ॥ तीम तीम नीचे जालजे । ढुंक थाय तेहने मोक्षपद ॥७॥ तह तहवि न्नायव्वं । आसन्नं से परम पयं ॥ ७ ॥ दुःकर ते करीने । जेणे करीने समर्थे करी ज्योवन व्रतते थके ॥
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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