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________________ - ११० एहवो रेहेनेमी गफामां रहे राजेमती संघाथे वा नपर वीषयबु लो तेणे राजमती साधवीने। द्वि करी ॥६॥ __रहनेमी रायमई। रायमई कासिहि विसया॥६॥ मदनरूप पवने करीने जो पण ते मेरुपरवत जेहवा अचल पु हवा। रुष चल्या ॥ | मयण पवणेण जश् तारिसावि। सुरसेल निच्चला चलीया तो पाका पांदमा जेवा प्राणीनुनी। बीजा जीवोनी सी वात केहेवी७० ___ता पकपत्त सत्ताणं। इअर सत्ताण कावत्ता ॥७॥ झीते सुखे करीने नीचे। सिंह हाथी सर्प आदे मोहोटा॥ जिप्पंति सुहेणं चित्र।हरि करि सप्पाइणो महाकूरा॥ पण एक नीचे दुःखे झी एक कंदर्प ते केहवो ने करनार ने मो तवा योग । क्षसुखथी वीपरीत ॥७१॥ इकुच्चिय दुके। कामो कय सिवसुह विरामो॥७॥ वीखमी वा वांकी वीषयनी अनादीकालनी नबनावना जीव तरस। ने ॥ विसमा विसय पिवासा। प्रणा नवनावणा जीवाणं अती दुर्जय बे इंद्रियो। तीमज चपल एहवु चीत्त मन ॥७॥ अश् दुलेआणि इंदिआणि। तह चंचलंचित्तं ॥॥ मागे मल नपजे अरती नपजे रोग थाय दाघज्वरादिक घणा प्र यसुख वा नही सुख नपजे। कारनां दुःख थाय ॥ कलमल अर असुका। वाही दाहा विविह दुका। जावत् मरण पण नीचे था संपजे वा थाय कोने जे प्राणीने य वीजोग आदे। कामे तपाव्या बे तेहने ॥७३॥ मरणंपि हु विरहाइसु। संपऊ काम तविाणं॥७३॥ - - INDIDDLETERIA
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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