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________________ - ए तिलमित्तं विसय सुहं । दुहंच गिरि राय सिंग तुगयर।। ते नोगवतां कोज्यो नवे पि माटे हवे जीम जांणे तीम करजे ण नही खुटे। ॥६॥ नवकोमिहि न निधई । जं जाणसु तं करिजासु॥६॥ नोग जोगवतां मीठा पण कर्म न कीपाकनां फल तुल्य खातां दय आवे कमुवा। मीगं ए खसर्नु॥ नुजंता महुरा विवाग विरसा। किंपागतुन्ना श्मे कछत्र॥ खण सदाइं दुःख नपजावणहा आपे नीजमतीइं मानेला सु खवालाने ॥७॥ कंमुअ अणंव दुक जणया। दाविंति बुद्धिं सुहे ॥७॥ मध्याने रणमां मृग पाणीनी सततं वा हमेस खोटा अनीप्राय भ्रांतीइं आतुर थयो थको। संधीपद।। मभन्ने मयतिन्नअव्व। सययं मिछानिसंधि प्पया॥ नोगव्या थका आपे माती जो गहन दुःखे पार पामीई एहवा नीमां जन्म। जोग मोहोटा वैरी ॥७॥ नत्ता दिति कुजम्मजोणि।गहणं नोगा महावैरिणो॥ समरथ थइइं अग्नि वारवाने। पांणीइं करीने बलतो पीण निश्चे। । सक्का अग्गी निवारे। वारिणा जलिगवि हु॥ सर्व समुद्रोना पाणीइं करी। कामरूप अग्नि दुःखे नीवारी स ने पिण। कीड़ा ___ सव्वोदहि जलेणावि। कामग्गी दुन्निवार ॥५॥ विषनीपरे मुखे प्रथम मी पण परीणामे अतीसय दारुण एह ठा अती। वा वीषय॥ विसमिव मुहंमि महुरा।परिणाम निकाम दारुणा विसया
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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