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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यंजनके ऊपरकी तरफ लगती है (देखो दे, ये, ते). 'ओ' का चिन्ह एक छोटीसी तिरछी लकीर है, जो व्यंजनकी बाई बाजूपर लगती है ( देखो नो, मो, यो). अनुस्वारका मुख्य चिन्ह v है, जो अक्षरके नीचेको लगता है (देखो अं, व, षं), परन्तु कितनेएक अक्षरोंके साथ भिन्न प्रकार से भी लगाया हुआ पायाजाता है, जैसा कि, 'कं, म, यं, शं और हं' में बतलाया गया है. जैसे वर्तमान देवनागरी लिपिमें क्र, ल, प्र, व्र, आदि संयुक्ताक्षरोंमें 'र' का चिन्ह एक आडी लकीर है, वैसेही गांधार लिपिके संयुक्ताक्षरों में भी 'र' का चिन्ह आडी लकीर है, जो पूर्व व्यंजन की दाहिनी ओरको लगाई जाती है ( देखो त, द्र, ध्र, प्रि आदि ). संयुताक्षरमेंसे पहिला अक्षर ऊपर, और दूसरा नीचे लिखाजाता है ( देखो स्त), परन्तु कहीं कहीं इससे विपरीत भी पाया जाता है (देखो ह्य), जो लिखने वालेका दोष है. 'धर्मलिपि' को 'भ्रमलिपि', 'प्रियदर्शी' को प्रियद्रशि' लिखा है, सो भी लेखक दोषही है. लेखकी अस्ली पंक्तियोका अक्षरान्तर: अयं धमलिपि देवनं प्रिअस रनो लिखपित हिद नो किचि जिवे आर - - प्रयेातवे नो पि च समज कटव बहुक हि दोष समयस देवनं प्रियो प्रियद्राश रय - खति अठि पिचअ कतिअ समय सेस्तमते देवनं प्रिअस प्रिअद्रशिस रनो पुरे महनससि देवनं प्रियस प्रियदशिस रत्रो अनुदिवसो बहुनि प्र--तसहसनि (१) लिपिपत्र २६ वा. यह लिपिपत्र तुरुष्कवंशी राजा कनिष्कके समयके, [शक संवत् ११ के गांधार लिपिके ताम्रपतकी छापोंसे (२) तय्यार किया है. इसकी लिपि लिपिपत्र २५ की लिपिसे बहुत मिलती हुई है, परन्तु 'अ', 'इ', 'क' आदि कितनेएक अक्षरोंके बीचका हिस्सा दबा हुआ और नीचेका (१) इय' धर्म लिपि वानां प्रियस्य राज्ञो लेखिता इह नो किञ्चिज्जीव आनभ्य महोतव्य नो अपि च समाजा: कर्तव्या बढ़का हि दोषाः समाजस्य देवानां प्रियो प्रियदर्षी राजा पश्यति अस्ति पित्रा कृता : समाना: श्रेष्ठमता : देवानां प्रियस्य प्रियदर्शिनो राजपुरा महानसे देवानां प्रियस्य प्रियदर्भि नो राशो ऽनुदिवस' बहनि प्राणशतसहस्राणि (२) एभियाटिक सोसाइटी बङ्गालका जर्नल (जिन्द ३८, हिला १, पृष्ठ ६८ के पासकी नेट). इण्डियन एण्टिकरी (जिल्द १०, पृष्ठ १२४ के पासको लेट). For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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