________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
छापसे (१)तय्यार किया है. इसमें कोई संवत् नहीं दिया, परन्तु लक्ष्मणसेन संवत् चलानेवाला लक्ष्मणसेन इसी विजयसेनका पौत्र था, जिससे उक्त लेखका समय विक्रम संवत्की १२ वीं शताब्दीका मध्य ठहरता है. इसमें '' और 'व' का भेद नहीं है. इसी लिपिसे प्रचलित बंगला लिपि बनी है.
लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तरः
तस्मिन सेनान्ववाये प्रतिसुभटशतोत्सादनब(ब्रह्मवादी स ब(ब)ह्मक्षत्रियाणामजनि कुलशिरोदामसामन्तसेन : उद्गीयन्ते यदीयाः स्खलदुदधिजलोल्लोलशीतेषु सेतो : कच्छान्ते प्वप्सरोभिईशरथतनयस्पईया युद्धगाथा ः॥ यस्मिन् सङ्गरचत्वरे पटुरटत्तूर्योपहूतद्विषदर्गे येन रूपाण
लिपिपत्र २२ वा. यह लिपिपत्र बंगालके राजा लक्ष्मणसेनके दानपत्रकी छापसे (२) तय्यार किया है, जिसमें उक्त राजाका संवत् ७ लिखा है. इसकी लिपि लिपिपत्र २१ से मिलती हुई है. इसमें भी 'घ' और 'व' का भेद नहीं है, और अक्षरों के सिरकी आकृतिमें फर्क है.
दानपत्रकी अस्ली पक्तियोंका अक्षरान्तरः
स खलु श्रीविक्रमपुरसमावासित[:] श्रीमज्जयस्कन्धावारात् महाराज(जा)धिराजश्रीव(ब)लालसेनदेवपादानुध्यातपरमेश्वरपरमवैष्णवपरमभट्टारकमहाराज(जा)धिराजश्रीमल(ल्ल)क्ष्मणसेनदेवः कुशली । समुपगताशेषराजराजन्यकराज्ञीराणकराजपुत्रराजामात्य
लिपिपत्र २३ वां. यह लिपिपत्र चितागौंगसे मिले हुए राजा दामोदरके समयके शक सं० ११६५ के दानपत्रकी छापसे (३) तय्यार किया है. इसकी लिपि लिपिपत्र २१ वें से मिलती जुलती है. इसमें 'ब' और 'व' का भेद नहीं है.
(१) एपिग्राफिया इण्डिका (जिल्द १, पृष्ठ ३०८ के पासको प्लेट ).
(२) एशियाटिक सोसाइटी बगालका जर्नल (जिल्द ४४, हिस्सा १, पृष्ठ ३ के पासकी प्लेट).
(३) एशियाटिक सोसाइटो बगालका जर्नल (जिल्द ४३, हिस्सा ?, पृष्ठ ३१८ के पासको प्लेट)
For Private And Personal Use Only